जीवन में असली उड़ान अभी बाकी है; हमारे इरादों का इम्तिहान अभी बाकी है;
सृजन में चोट खाता है छेनी और हथौड़ी का,
वही पाषाण मंदिर में कहीं भगवान होता है |
इतने बुरे ना थे हम जो ठुकरा दिया तुमने हमेँ..
अभी तो नापी है सिर्फ मुट्ठी भर ज़मीन; अभी तो सारा आसमान बाकी है।
असफलता एक चुनौती है इसे स्वीकार करो;
आज मन कर रहा है
उनके लिये कुछ लिखने का जिनके कारण मुझे मेरी विशिष्ट पहचान मिली। मैं आभारी हूँ
उन सभी का जिन्होंने वात्सल्य के साथ साथ मुझे दण्ड भी दिया, हलांकि उस समय वो
दण्ड बहुत बुरा लगता था लेकिन आज उसका वास्तविक महत्व समझ में आ रहा है।
ना सोचो अकेली किरण क्या करेगी ,
तिमिर में अकेली ,किरण ही बहुत है!
श्री श्रीकांत जी -मुझे ठीक से याद नहीं लेकिन मेरे बाबा जी बताते हैं कि मेरी शिक्षा आरम्भ होने से
पूर्व उन्होंने घर पर पाटी पूजन का कार्यक्रम रखवाया और मेरी जिह्वा पर चन्दन से
माँ सरस्वती मंत्र लिखवाया। अगले तीन वर्ष की प्रारंभिक शिक्षा आपके सानिध्य में
हुई।आपने बीज को पौधा बनाने में खाद का काम किया।मुझे नहीं पता अब आप कहाँ हैं
लेकिन मैं जीवन पर्यन्त आपको नहीं भूल सकता ।
असफलता एक चुनौती है इसे स्वीकार करो;
क्या कमी रह गयी है, उसे देखो और सुधार करो;
श्री गोपाल जी-
सरस्वती शिशु मंदिर में पढते हुए गणित के प्रति आपने मेरी रूचि को स्थापित किया।यह
एक ऐसा विषय है जिससे विद्यार्थी डरते हैं लेकिन आपकी मेहनत के कारण ही मुझे कभी
गणित से डर नहीं लगा बल्कि गणित मेरा प्रिय विषय बनकर रहा।जब लखनऊ में कक्षा 9 में
पढता था और विद्यार्थियों को पहाड़े याद न करने पर कक्षा में पीछे खड़ा कर दिया
जाता था तब मैं बहुत ही गुरूर के साथ पूरी कक्षा में अकेले सीट पर बैठता था, मेरे
उस गुरूर की वजह आप थे।
इक पत्थर की भी तक़दीर संवर सकती है,
शर्त ये है,की सलीके से तराशा जाए !
श्री शिव नारायण जी-
गुरूदेव आपकी मार में छुपा हुआ प्यार मुझे 4 वर्षों के बाद समझ आया।हिंदी की
भाषागत अशुद्धियों के लिए जब आप पूरी कक्षा के सामने मुझे पीटते थे तब मुझे एक बात
समझ में नहीं आती थी कि कक्षा के 52 विद्यार्थियों में सिर्फ मैं ही क्यों
....लेकिन अब मुझे उसका जवाब मिल गया है, आपने दिया बनाने के लिए मुझ मिट्टी को ही
चुना था।मुझे याद है जब मैंने पहली बार अपनी उत्तर पुस्तिका पर एक प्रेरक वाक्य
लिखा था,और आपने मेरी उत्तर पुस्तिका प्रधानाचार्य से लेकर प्रत्येक कक्षा में
दिखाई थी और तब से मैं प्रत्येक प्रष्ठ पर प्रेरक वाक्य लिखने लगा था।आपने ही
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्राथमिक शिक्षा वर्ग का प्रशिक्षण दिलाया और संघ के
मूल विचार की अनुभूति भी कराई।आज जितनी बार मेरी हिंदी की प्रशंसा होती है उतनी
बार आपको प्रणाम करता हूँ।
खुशबू श्रीवास्तव -
तेरे
जाने का असर कुछ इस कदर हुआ मुझ पर
कि तुझे ढूढते ढूढते
मैंने खुद को पा लिया
अब, जब मैंने सच
बोलना सीख ही लिया है तो एक सच ये भी है कि मेरी राइटिंग की वजह तुम हो।जब तुमसे
बचपन वाला प्यार हुआ तब मुझे लगा कि तुम्हारे जैसा लिखने की कोशिश करूँ।मैं आज भी
तुम्हारे जैसा खूबसूरत नहीं लिख पाता लेकिन I और K अभी भी बिल्कुल वैसा ही बनाता
हूँ जैसा तुम बनाती थी। अवांछित पत्र जो खोले नहीं कल तलक तुमने,सारा विश्व
पढ़ रहा उनको......तुमको सूचित हो
श्रीमती पारुल जी- मैम
आपने हमेशा एक बड़ी बहन की तरह मुझे समझाया।हमेशा मेरा प्रोत्साहन किया।आपके घर पर
जब मैं ट्यूशन पढ़ने आता था और पढ़ाने के बाद अपनी व्यक्तिगत बातें आपसे बताता था
और आप मुस्कुराते हुए उन्हें सुनती थीं तभी मेरी आधी समस्याएँ समाप्त हो जाती थीं।
मैं अपने जीवन में अंग्रेजी भाषा का प्रयोग तो नहीं करता लेकिन अंग्रेजी का जितना
भी ज्ञान है वो सब आपने दिया है।
श्री नितिन मित्तल
जी -मेरे छात्र जीवन के राजनीतिक गुरू। अब तक बहुत से मंचों से बहुत कुछ बोल चुका।
बहुत सी तालियाँ,वाहवाही और पुरस्कार भी मिले लेकिन श्रोताओं को मोहित कर लेने
वाली बात आज भी मुझमें नहीं आई। जब आप विश्वविद्यालय में खड़े होकर अपना विषय रखते
थे तब मन में बस एक ही बात आती थी कि यार इतना अच्छा कैसे.....यार लेकिन लाठियाँ
भी बहुत खिलाईं तुमने....
श्री आशीष पाण्डे जी -भाई तुमसे भी बहुत कुछ सीखा है मैंने। कमरे के अंदर मजाक मजाक में भाषण देना,अपनी
बात पर अडिग रहते हुए तर्कों के साथ उसे प्रमाणित करके ही मानना, यार गजब प्रतिभा
थी। तुम बिल्कुल मेरे जैसे थे जो सोच लिया सब कुछ छोड़कर बस वही करना है। दूसरा
कोई नहीं मिला तुम्हारे जैसा भाई।
वही पाषाण मंदिर में कहीं भगवान होता है |
डा. अरुण भगत जी-
गुरुदेव मेरे पास वो शब्द नहीं हैं जिनके माध्यम से मैं आपके विषय में कुछ लिख
सकूँ।मुझे लेकर आप पर पक्षपात के बहुत से आरोप लगे लेकिन वास्तविकता सिर्फ मैं ,
आप और ईश्वर जानता है।अवश्य ही मेरे पूर्व जन्म के कुछ पुण्य कर्म रहे होंगे जिसकी
वजह से आपका सानिध्य मिला। आपने एक पिता की तरह मुझे मेरे गलत कामों पर डाँटा भी और
प्रेम भी दिया।अगर आप न होते तो मैं भी अंग्रेजी की चकाचौंध में खो जाता। जामिया
वाली प्रतियोगिता में मेरे वक्तव्य के बाद सभी ने मुझसे कहा कि तुम अच्छा नहीं बोले,कालेज
के मंच और राष्ट्रीय मंच में अंतर होता है, उस समय मैं बस एक ही बात सोच रहा था कि
मैंने आपका विश्वास तोड़ा है , लेकिन वहीं दूसरी ओर जब मैं रविशंकर प्रसाद जी वाले
कार्यक्रम में थोड़ा सा वन्दे मातरम भूल गया तो आपने मुझसे कहा कि बहुत अच्छा प्रयास
था। गुरुदेव आपके आशीर्वाद एवं प्रोत्साहन की अपेक्षा जीवन पर्यन्त रहेगी।आपका
सादगीपूर्ण एवं सैद्धांतिक जीवन ही मेरे कार्यशैली का आधार रहेगा।
क्वीन -जब से तुमको
समझा बस तुममें ही खोता गया। बस इतना ही कहूँगा तुम्हारे लिए कि जो नाम तुमको मैंने
दिया है वो यूँ ही नहीं दिया। कौन चाहता है तुम्हें ये सोचकर तुम्हें खुद से
मोहब्बत हो जाएगी।
अपने फैसले पर एक दिन अफसोस
तुम्हेँ भी होगा.!!!
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