राष्ट्रीयता का आधारभूत घटक स्थानीयता है।स्थानीयता राष्ट्र
का वह मूलभूत अंग है जिसके द्वारा प्रेम को या यूँ कहें शाश्वत प्रेम को को
परिभाषित किया जासकता है
आज 1 जून 2015 को पहला दिन आज मैं नवभारत टाइम्स ज्वाइन
करने के लिए जा रहा हूँ। मन में कुछ अजीब सा डर है। अभी अभी हनुमान चालीसा का पाठ
किया,तब जाकर दुबारा से लिखने बैठा हूँ। आज तक जो भी मेरे साथ अच्छा हुआ सब ईश्वर
की कृपा के कारण हुआ।मेरे अंदर विद्यमान आत्मा रूपी परमात्मा ने आसपास के वातावरण
से सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करके इन अच्छे कामों को करवाया।ईश्वर जिसमे सम्पूर्ण
ब्रह्मांड की रचना की प्रथम व्यक्ति से लेकर अंतिम जीव तक का निर्माण किया उस
ईश्वर से भिड़ने की क्षमता हमारी नहीं।और इतिहास साक्षी है कि जब जब मनुष्य ने
ईश्वर की परिकल्पना के आधारभूत स्तंभ अर्थात प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की है तब तब
ईश्वर ने स्वयं को प्रमाणित किया है।यदि ईश्वर के इन इशारों को हम नहीं समझ रहे तो
यह हमारी नादानी है, अब ईश्वर स्वयं हमारे सामने आकर ये तो नहीं कहेगा कि देखो मैं
ईश्वर हूँ, मेरे द्वारा बनाई गई चीजों का दोहन मत करो। इसी मूल सिद्धांत के साथ
मैंने अपने जीवन को यापित किया है। अपने जीवन यापन हेतु किसी प्रकार के अनर्गल
सिद्धांत को प्रतिपादित नहीं किया। ईश्वर की सत्ता पर प्रश्नचिन्ह लगाकर हम स्वयं
को कितना भी बड़ा ज्ञानी साबित करने में लगे हों लेकिन वास्तविकता यह है कि ऐसा
करके हम स्वयं पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं।
हमने ओम को पढ़ा तो बहुत लेकिन कभी ओम को समझा नहीं....हमने
रामायण तो पढ़ ली लेकिन राम के चरित्र को समझने का प्रयास नहीं किया, राम के
चरित्र को स्वयं में नहीं उतारा। और तो और हमने तो द्वापर युग के महानायक श्री
कृष्ण को भी कटघरे में खड़ा कर दिया। जिन वेदों की ऋचाओं पर आज जर्मनी शोध कर रहा
है उन ऋचाओं को कभी हमने गंभीरता से समझने का प्रयास ही नहीं किया। अपने गौरवशाली
अतीत को भूलकर अकबर को महान बताया । अपनी परंपराओं को , अपनी संस्कृति , अपनी
सभ्यता को गिरा हुआ बताकर स्तरहीन पश्चिमी जगत का अंधानुकरण किया।
जब कोई व्यक्ति अपने पिता पर प्रश्नचिन्ह लगाने लगे तो समझ
लेना चाहिए कि उस व्यक्ति का अंत निकट है।
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