आज मेरे पास एक वरिष्ठ पत्रकार महोदय का फोन आया, संभवतः उन्होंने मेरा मोबाइल नंबर फेसबुक से लिया होगा (उनकी बातों से अनुमान लगाया)। उन्होंने मुझसे पहला प्रश्न पूछा कि विश्व गौरव जी आपने अपना फेसबुक पेज कब बनाया था। मैनें उनसे कहा महोदय पहले अपना परिचय दीजिए..तब उन्होंने कहा कि वो एक निजी चैनल में वरिष्ठ पत्रकार हैं...इतना बताने के बाद उन्होंने फिर से अपना प्रश्न दोहरा दिया...उनके प्रश्न को सामान्य रूप से लेते हुए मैंने बताया कि 6 साल पहले बनाया था...मेरे जवाब देने के बाद वो बोले अच्छा अच्छा उस समय छात्र जीवन में रहे होंगे...मैंने कहा हां...तो उन्होंने कहा विश्व गौरव जी अब तो आप व्यावसायिक जीवन में आ चुके हैं फेसबुक पेज का नाम तो नहीं बदल सकता लेकिन फेसबुक प्रोफाइल से राष्ट्रवादी शब्द हटा दीजिए...उनके इतना कहते ही मुझे उनके पूरा विषय समझ आ गया दरअसल में उनके अन्दर मेरे पेज पर मेरे नाम के साथ राष्ट्रवादी हिन्दू देखकर सेक्लुरिज्म का कीड़ा जाग उठा था।
मित्रों जब मैंने वो फेसबुक पेज बनाया था उस समय मेरी उम्र 18 साल थी लेकिन इस का मतलब ये नहीं मैंने राष्ट्रवादी हिन्दू शब्द का प्रयोग भावावेश में किया था। मैंने पूरे विवेक के साथ उस शब्द को अपने नाम के साथ जोड़ा था। मैंने उन पत्रकार महोदय से 1 घंटे तक बात की तब वो मेरे विषय से सहमत हुए। मुझे लगा कि ऐसे विषय पर ब्लाग लिखना चाहिए जिससे कि यदि कोई मुझे ऐसी राय दे तो मैं अपना समय व्यर्थ नष्ट न करते हुए अपने ब्लॉग का लिंक देकर अपना विषय स्पष्ट कर सकूं।
मित्रों मेरे लिए राष्ट्रवादी और हिन्दू दोनों शब्दों के मायने थोड़े अलग हैं... भारत के अतरिक्त किसी भी अन्य देश का व्यक्ति राष्ट्रवादी नहीं हो सकता लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि वह देशभक्त नहीं हो सकता। राष्ट्रवाद की मूल परिकल्पना को समझने के लिए देश, राज्य तथा राष्ट्र की परिकल्पना को अलग अलग समझना आवश्यक है।
देश एक भौगोलिक ईकाई है तथा राज्य देश का राजकीय अथवा शासकीय घटक है । देश मे एक अथवा एक से अधिक राज्य भी हो सकते है । जबकि राष्ट्र एक सांस्कृतिक ईकाई है , जिसके लिए मात्र भूमि ,लोगो ,एवं शासन पर्याप्त नहीं है अपितु सांस्कृतिक एकता की अनुभूति आवश्यक है । देश राष्ट्र के शरीर का एक भाग हो सकता है ,जबकि संस्कृति राष्ट्र की आत्मा है । राष्ट्र स्थिर व चिरंतर है जबकि राज्य अस्थिर हो सकता है अथवा बदल भी सकता है ।
अपने देश एवं उनकी परंपराओं के प्रति , उसके ऐतिहासिक महापुरुषों के प्रति , उसकी सुरक्षा एवं समृद्धि के प्रति जिसकी अव्यभिचारी एवं एकांतिक निष्ठा हो वही लोग राष्ट्रीय अथवा राष्ट्रवादी कहे जाते हैं।
मैंने अभी लिखा कि भारत के अतरिक्त किसी भी अन्य देश का व्यक्ति राष्ट्रवादी नहीं हो सकता वो इस लिए क्योंकि किसी भी अन्य देश के पास उनकी स्थायी संस्कृति ही नहीं है। इस लिए वो अपनी भौगोलिक ईकाई के प्रति समर्पित तो हो सकते हैं लेकिन उनसे राष्ट्रवादी होने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। मेरे लिए भौगोलिक संरक्षण से अधिक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक संरक्षण है, क्योंकि मुझे पता है कि परम पवित्र भारतवर्ष का आधार यहां की संमृद्ध संस्कृति है ।
ये विषय तो हो गया राष्ट्रवादी शब्द के मूल भाव का अब विषय आता है हिन्दू शब्द का....
हमारे पौराणिक ग्रन्थों में कहीं हिन्दू, हिन्दुत्व और हिन्दू धर्म का उल्लेख नहीं है।पुराणों में कर्इ कथाएं हैं, पर किसी कथा में हिन्दू धर्म की व्याख्या नहीं की गयी है। रामायण और महाभारत संसार के वहृततम और श्रेष्ठतम महाकाव्य है, जिनके महानायक राम और कृष्ण हैं, किन्तु इनकी महता देवताओं के रुप में नहीं की गयी हैं। इन्हें विष्णु का मनुष्य रुप में अवतार माना गया है। भग्वदगीता को धर्म का चश्मा उतार कर पढ़ने से इसमें छुपा हुआ गूढ आध्यात्मिक अर्थ समझ में आता है। भग्वद गीता धर्म, दर्शन और आध्यात्म का अनुपम ग्रन्थ है, जो हमारी राष्ट्रीय निधि है। शताब्दियों पूर्व लिखा गया यह ग्रन्थ विश्व का पहला और अंतिम ऐसा ग्रन्थ हैं, जैसा न कभी लिखा गया था और न लिखा जायेगा। किन्तु गीता के किसी श्लोक में हिन्दू, हिन्दु धर्म और हिन्दुत्व की व्याख्या नहीं की गयी है।
हिन्दू और हिन्दुत्व शब्द को सियासत मे लपेट कर जो व्याख्या की जा रही है, वह जानबूझ कर वातावरण को विषाक्त करने का प्रयास है। हमारा राष्ट्र भारत था, भारत है और भारत ही रहेगा। मुगलो ने इसे हिन्दुस्तान बनाया और अंग्रेजों ने इंड़िया। अंग्रेज इंड़िया में रहते थे, किन्तु अपने आपको ब्रिटिश कहते थे, किन्तु मुगल हिन्दुस्तानी कहते थे, क्योंकि हिन्दुस्तान को ही वे अपना मुल्क मानते थे। उन्हें हिन्दू शब्द से न तो घृणा थी और न ही इस विशेषण को अपनी पहचान के आगे लगाने से अपने आपको अपमानित महसूस करते थे। पाकिस्तान बनने के पहले सारे मुसलमान हिन्दुस्तानी मुसलमान कहलाते थे, किन्तु अब वे पाकिस्तानी और हिन्दुस्तानी कहलाते हैं। स्पष्ट है, हिन्दु धर्म नहीं, पहचान है, फिर इसे धर्म से क्यों जोड़ा जा रहा है ?
हमारी संस्कृति शांति और सहिष्णुता का पाठ पढाती है। हमने तलवार के बल पर नहीं, दिलों को जोड़ कर दुनिया जीती हैं । पूरी दक्षिण -पूर्वी ऐशिया में हज़ारों वर्षों से हमारी सांस्कृतिक विरासत आज भी अक्षुण्ण हैं। हमने हिंसा से नहीं, शांति के पाठ से संसार को बोद्धमय बनाया। कभी खून खराबे से दुनिया को जीतने की योजनाएं नहीं बनायी। इतिहास गवाह है कि जो तलवार ले कर दुनिया फतह करने निकले थे, वे मिट गये, किन्तु हमारी धर्म पताका विश्व में आज भी फहरा रही है।
सामान्य शब्दों में यदि समझें तो अटक से कटक तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक के क्षेत्र में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति जो गाय, गंगा ,गीता और गायत्री का सम्मान करता है भले ही वह किसी भी पूजा पद्धति को मानता हो, हिन्दू है।जो व्यक्ति श्री राम की मूर्ति के सामने बैठकर पूजा करता हो किन्तु गायत्री के रहस्य को न जानता हो वह हिन्दू नहीं हो सकता और जो भले ही नमाज अदा करता हो लेकिन गंगा की पवित्रता को बनाए रखने के लिए प्रयासरत हो वह हिन्दू है।
राष्ट्रवादी तथा हिन्दू शब्द की मूल परिकल्पना को यदि हमने समझकर स्वीकार कर लिया तो निश्चय ही हमारी 90 प्रतिशत समस्याओं का समाधान हो जाएगा।
वन्दे भारती
मित्रों जब मैंने वो फेसबुक पेज बनाया था उस समय मेरी उम्र 18 साल थी लेकिन इस का मतलब ये नहीं मैंने राष्ट्रवादी हिन्दू शब्द का प्रयोग भावावेश में किया था। मैंने पूरे विवेक के साथ उस शब्द को अपने नाम के साथ जोड़ा था। मैंने उन पत्रकार महोदय से 1 घंटे तक बात की तब वो मेरे विषय से सहमत हुए। मुझे लगा कि ऐसे विषय पर ब्लाग लिखना चाहिए जिससे कि यदि कोई मुझे ऐसी राय दे तो मैं अपना समय व्यर्थ नष्ट न करते हुए अपने ब्लॉग का लिंक देकर अपना विषय स्पष्ट कर सकूं।
मित्रों मेरे लिए राष्ट्रवादी और हिन्दू दोनों शब्दों के मायने थोड़े अलग हैं... भारत के अतरिक्त किसी भी अन्य देश का व्यक्ति राष्ट्रवादी नहीं हो सकता लेकिन इसका मतलब यह कतई नहीं है कि वह देशभक्त नहीं हो सकता। राष्ट्रवाद की मूल परिकल्पना को समझने के लिए देश, राज्य तथा राष्ट्र की परिकल्पना को अलग अलग समझना आवश्यक है।
देश एक भौगोलिक ईकाई है तथा राज्य देश का राजकीय अथवा शासकीय घटक है । देश मे एक अथवा एक से अधिक राज्य भी हो सकते है । जबकि राष्ट्र एक सांस्कृतिक ईकाई है , जिसके लिए मात्र भूमि ,लोगो ,एवं शासन पर्याप्त नहीं है अपितु सांस्कृतिक एकता की अनुभूति आवश्यक है । देश राष्ट्र के शरीर का एक भाग हो सकता है ,जबकि संस्कृति राष्ट्र की आत्मा है । राष्ट्र स्थिर व चिरंतर है जबकि राज्य अस्थिर हो सकता है अथवा बदल भी सकता है ।
अपने देश एवं उनकी परंपराओं के प्रति , उसके ऐतिहासिक महापुरुषों के प्रति , उसकी सुरक्षा एवं समृद्धि के प्रति जिसकी अव्यभिचारी एवं एकांतिक निष्ठा हो वही लोग राष्ट्रीय अथवा राष्ट्रवादी कहे जाते हैं।
मैंने अभी लिखा कि भारत के अतरिक्त किसी भी अन्य देश का व्यक्ति राष्ट्रवादी नहीं हो सकता वो इस लिए क्योंकि किसी भी अन्य देश के पास उनकी स्थायी संस्कृति ही नहीं है। इस लिए वो अपनी भौगोलिक ईकाई के प्रति समर्पित तो हो सकते हैं लेकिन उनसे राष्ट्रवादी होने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। मेरे लिए भौगोलिक संरक्षण से अधिक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक संरक्षण है, क्योंकि मुझे पता है कि परम पवित्र भारतवर्ष का आधार यहां की संमृद्ध संस्कृति है ।
ये विषय तो हो गया राष्ट्रवादी शब्द के मूल भाव का अब विषय आता है हिन्दू शब्द का....
हमारे पौराणिक ग्रन्थों में कहीं हिन्दू, हिन्दुत्व और हिन्दू धर्म का उल्लेख नहीं है।पुराणों में कर्इ कथाएं हैं, पर किसी कथा में हिन्दू धर्म की व्याख्या नहीं की गयी है। रामायण और महाभारत संसार के वहृततम और श्रेष्ठतम महाकाव्य है, जिनके महानायक राम और कृष्ण हैं, किन्तु इनकी महता देवताओं के रुप में नहीं की गयी हैं। इन्हें विष्णु का मनुष्य रुप में अवतार माना गया है। भग्वदगीता को धर्म का चश्मा उतार कर पढ़ने से इसमें छुपा हुआ गूढ आध्यात्मिक अर्थ समझ में आता है। भग्वद गीता धर्म, दर्शन और आध्यात्म का अनुपम ग्रन्थ है, जो हमारी राष्ट्रीय निधि है। शताब्दियों पूर्व लिखा गया यह ग्रन्थ विश्व का पहला और अंतिम ऐसा ग्रन्थ हैं, जैसा न कभी लिखा गया था और न लिखा जायेगा। किन्तु गीता के किसी श्लोक में हिन्दू, हिन्दु धर्म और हिन्दुत्व की व्याख्या नहीं की गयी है।
हिन्दू और हिन्दुत्व शब्द को सियासत मे लपेट कर जो व्याख्या की जा रही है, वह जानबूझ कर वातावरण को विषाक्त करने का प्रयास है। हमारा राष्ट्र भारत था, भारत है और भारत ही रहेगा। मुगलो ने इसे हिन्दुस्तान बनाया और अंग्रेजों ने इंड़िया। अंग्रेज इंड़िया में रहते थे, किन्तु अपने आपको ब्रिटिश कहते थे, किन्तु मुगल हिन्दुस्तानी कहते थे, क्योंकि हिन्दुस्तान को ही वे अपना मुल्क मानते थे। उन्हें हिन्दू शब्द से न तो घृणा थी और न ही इस विशेषण को अपनी पहचान के आगे लगाने से अपने आपको अपमानित महसूस करते थे। पाकिस्तान बनने के पहले सारे मुसलमान हिन्दुस्तानी मुसलमान कहलाते थे, किन्तु अब वे पाकिस्तानी और हिन्दुस्तानी कहलाते हैं। स्पष्ट है, हिन्दु धर्म नहीं, पहचान है, फिर इसे धर्म से क्यों जोड़ा जा रहा है ?
हमारी संस्कृति शांति और सहिष्णुता का पाठ पढाती है। हमने तलवार के बल पर नहीं, दिलों को जोड़ कर दुनिया जीती हैं । पूरी दक्षिण -पूर्वी ऐशिया में हज़ारों वर्षों से हमारी सांस्कृतिक विरासत आज भी अक्षुण्ण हैं। हमने हिंसा से नहीं, शांति के पाठ से संसार को बोद्धमय बनाया। कभी खून खराबे से दुनिया को जीतने की योजनाएं नहीं बनायी। इतिहास गवाह है कि जो तलवार ले कर दुनिया फतह करने निकले थे, वे मिट गये, किन्तु हमारी धर्म पताका विश्व में आज भी फहरा रही है।
सामान्य शब्दों में यदि समझें तो अटक से कटक तक और कश्मीर से कन्याकुमारी तक के क्षेत्र में रहने वाला प्रत्येक व्यक्ति जो गाय, गंगा ,गीता और गायत्री का सम्मान करता है भले ही वह किसी भी पूजा पद्धति को मानता हो, हिन्दू है।जो व्यक्ति श्री राम की मूर्ति के सामने बैठकर पूजा करता हो किन्तु गायत्री के रहस्य को न जानता हो वह हिन्दू नहीं हो सकता और जो भले ही नमाज अदा करता हो लेकिन गंगा की पवित्रता को बनाए रखने के लिए प्रयासरत हो वह हिन्दू है।
राष्ट्रवादी तथा हिन्दू शब्द की मूल परिकल्पना को यदि हमने समझकर स्वीकार कर लिया तो निश्चय ही हमारी 90 प्रतिशत समस्याओं का समाधान हो जाएगा।
वन्दे भारती
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