Wednesday 26 August 2015

अजीत डोभाल की कहानी मेरी जुबानी- भाग.1

विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन और डोभाल
अजित डोभाल का झुकाव हिंदुत्ववादी विचारधारा की ओर माना जाता है। वो उस विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन के फाउंडर अध्यक्ष भी रहे हैं जिसे RSS के थिंक टैंक के तौर पर जाना जाता हैं। साल 2010 में बीजेपी ने राष्ट्रीय सुरक्षा पर हरिद्वार में जो पहला अधिवेशन बुलाया था उसमें अजीत डोभाल को खास तौर से बुलाया गया था।अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार में अहम पदों पर रहे। अजित डोभाल लालकृष्ण आडवाणी के भी काफी करीबी माने जाते हैं। कहा जाता है कि अगर 2009 में बीजेपी चुनाव जीतती और आडवाणी प्रधानमंत्री बनते तो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की जिम्मेदारी अजित डोभाल को सौंपी जानी तय थी। यानी बीजेपी और आरएसएस से उनके पुराने एवं नजदीकी संबंध रहे हैं।

अडवानी और डोभाल के संबन्ध
आईबी के पूर्व प्रमुख अरूण भगत का खुले तौर पर बयान था कि RSS से उनका संबंध तो निश्चित रूप से है। क्योंकि विवेकानंद फाउंडेशन उन्हीं का बनाया हुआ है। वे आडवाणी के गृहमंत्री रहते हुए उनके काफी करीब आ गये थे। जब विपक्ष में रहते हुए आडवणी ने विदेशी खातों के बारे में एक दस्तावेज जारी किया तो उसे तैयार करने में उनकी काफी अहम भूमिका रही थी। तब पत्रकार अक्सर मजाक में कहा करते थे कि जब आडवाणी प्रधानमंत्री बनेंगे तो डोभाल को राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बनाया जाएगा। वे तो प्रधानमंत्री नहीं बने पर बाद में संघ परिवार के दूसरे शेर मोदीजी ने सत्ता संभाली और अजीत डोभाल राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बना दिए गए।

तोड़ दी आतंकियों की कमर
आमतौर पर कांग्रेस शासन काल में आईबी के निदेशक रहे हर अधिकारी को रिटायर होने पर राज्यपाल बना दिया जाता था। इनमें टीवी राजेश्वर, श्यामल दत्ता, एम के नारायणन आदि शामिल है। परन्तु अजीत डोभाल के साथ ऐसा नहीं हुआ। इसकी मूल वजह यही रही कि कांग्रेसी उन्हें भाजपा का आदमी समझते थे। लेकिन RSS, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी से अजित डोभाल की नजदीकियों से भी कही ज्यादा अहम उनकी काबीलियत और देशभक्ति है। डोभाल आतंकी संगठनों में घुसकर उनकी कमर तोड़ने वाले अधिकारियों में गिने जाते रहे हैं और मूलतः आपरेशंस में विश्वास करने वाले व्यक्ति हैं।

आइए जानते हैं भारत माँ के सपूत और संघ की विचारधारा से प्रभावित श्री डोभाल की गौरवशाली गाथा: -
1968 बैच के IPS ऑफिसर अजीत डोभाल ने तैनाती के चार साल बाद ही इंटेलीजेंस ब्यूरो ज्वाइन कर लिया था। 46 साल की अपनी नौकरी में महज 7 साल ही उन्होंने पुलिस की वर्दी पहनी। क्योंकि डोभाल के जीवन का 37 वर्ष देश के लिए जासूसी करते गुजरा है।

और जीत लिया इंदिरा गांधी का भी दिल
देश के लिए जान की बाजी लगा देने का जज्बा लिए जब एक जासूस अपने मिशन पर निकलता है तो उसके पीछे छूट जाता है उसका परिवार और पूरा समाज। डोभाल ने भी जब इंटेलीजेंस ब्यूरो में काम शुरु किया तो उनका ये काम ही उनकी जिंदगी का जुनून बन गया और 70 के दशक में डोभाल का यही जुनून उन्हें पूर्वोत्तर के राज्य मिजोरम तक खींच लाया था। इनकी कुछ ही समय पहले शादी हुई थी। वे फैमिली छोड़कर चले गए। 70 के दशक में मिजोरम भारत विरोध का अड्डा बना हुआ था। जहां अलगाववादी नेता लालडेंगा अलग देश की मांग कर रहा था और इसीलिए उसके संगठन मिजो नेशनल आर्मी ने लंबे वक्त से सरकार के खिलाफ खूनी संघर्ष छेड़ रखा था। डोभाल ने जान पर खेलकर एक अंडर कवर ऑपरेशन चलाया और मिजो नेशनल आर्मी की कमर तोड़ दी। बाद में लाल डेंगा ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अजित डोभाल ने उसके ही संगठन में घुसकर उसके 7 में से 6 टॉप कमांडरों को उसके ही खिलाफ भड़का दिया था। मजबूरन साल 1986 में लाल डेंगा को भारत सरकार के साथ समझौता करने के लिए मजूबर होना पडा था। मिजो नेशनल आर्मी को शिकस्त देकर डोभाल ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का भी दिल जीत लिया था। यही वजह है कि उन्हें महज 6 साल के करियर के बाद ही इंडियन पुलिस मेडल से सम्मानित भी किया था जबकि ये पुरस्कार 17 साल की नौकरी के बाद ही दिया जाता है ।


रिक्शा चालक बने डोभाल
यही नहीं राष्ट्रपति वेंकटरमन ने अजीत डोभाल को 1988 में कीर्तिचक्र से सम्मानित किया तो ये भी एक नई मिसाल बन गई। अजीत डोभाल पहले ऐसे शख्स थे जिन्हें सेना में दिए जाने वाले कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया था। 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार में आतंकवादियों को मार गिराने के ठीक चार साल बाद 1988 में ऑपरेशन ब्लैक थंडर भी चलाया गया था। जब स्वर्ण मंदिर में छिपे चरमपंथियों को बाहर निकालने के लिए एक बार फिर सुरक्षा बलों ने धावा बोला था। मंदिर में खालिस्तान समर्थक सुरजीत सिंह पनेटा के आतंकी घुस गए थे। तब डोभाल इलाके में रिक्शा चालक बनकर पहुंचे। उन्होंने खुद को ऐसे पेश किया कि वो पाकिस्तानी आईएसआई एजेंट हैं । आतंकी डोभाल के जाल में फंस गए। डोभाल स्वर्ण मंदिर के अंदर पहुंचे और आतंकियों की संख्या, उनके हथियार और बाकी चीजों का मुआयना किया। उन्होंने पनेटा को नकली विस्फोटक भी दिया। लौटकर पंजाब पुलिस को नक्शा बनाकर दिया, जिसकी मदद से ऑपरेशन चला और कई आतंकी मारे गये। और बाकी आतंकियों ने समर्पण कर दिया।

पढ़े-
अजीत डोभाल की कहानी मेरी जुबानी- भाग.2
अजीत डोभाल की कहानी मेरी जुबानी- भाग.3

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