Saturday 22 August 2015

ओज के एक 'बड़े' कवि के नाम सन्देश



युवावस्था में कदम रखते के बाद जब सामाजिक परिवेश को समझने की सोच विकसित हुई तो सबसे पहले अपने घर के परिवेश को समझा। घर का परिवेश थोड़ा सा साहित्यिक था इस नाते साहित्य की ओर रुझान होना स्वाभाविक था। मेरे बाबा जी मुझे श्री अटल बिहारी बाजपेई की कविताएं पढ़कर सुनाते थे जिन्हें सुनकर स्वतः मन में राष्ट्रवाद का भाव पुष्पित एवं पल्लवित होने लगता था। जब थोड़ा और बड़ा हुआ तो अपने चाचा जी श्री जगदीप शुक्ला'अंचल' को सुना, ओज के सबसे बड़े कवि उस समय तक मेरे लिए मेरे चाचा जी ही थे। फिर धीरे धीरे भारत के अन्य बड़े कवियों को भी सुनना शुरू किया। जिनमें डॉ. हरिओम पवांर, श्री गजेन्द्र सोलंकी, श्री विनीत चौहान, श्री अभय सिंह निर्भीक इत्यादि शामिल थे। इनकी कविताओं को सुनकर मन में देश के लिए कुछ करने का भाव स्थायित्व लेने लगता था। शायद इनमें से किसी भी कवि को ये न पता हो कि ये वो लोग हैं जिन्होंने मेरे परिवार के संस्कारों को उद्देश्य बनाया।


जब भी परेशानी की स्थिति में आता अथवा मन अशांत होता तो यूट्यूब पर इन कवियों को सुन लेता था लेकिन अभी कुछ माह पहले एक ऑडियो रिकार्डिंग मेरे ब्लॉग पर आई जिसमें बुखारी को खुले आम दुत्कारा गया था। उस ऑडियो को सुनकर लगा कि अब कविता पूर्णरूप से स्वतंत्र हो गई है। उस कवि के विषय में पता किया तो पता चला कि वह इटावा के गौरव चौहान हैं। मैनें अब यूट्यूब पर गौरव चौहान को सुनना शुरू कर दिया था। इसी बीच यूट्यूब पर दो अन्य महानुभावों के विषय में पता लगा। एक इमरान प्रतापगढ़ी एवं दूसरी सुश्री कविता तिवारी....

इन तीनों की एक एक कविता मैंने 50-50 से भी अधिक बार सुनीं। अब मैं आता हूं उस विषय पर जिसके लिए मैंने इतनी भूमिका बनाई। मित्रों इनमें से कविता जी के विषय में कुछ भी नहीं कह सकता। उनके लिए मेरे पास शब्द ही नहीं हैं। मां भारती की रक्षा के लिए, अपनी संस्कृति के संरक्षण के लिए अगर इस देश की नारी ने बोलना शुरू किया है तो निश्चित रूप से मन में एक विश्वास पैदा होता है कि भारत पुनः विश्वगुरू बनने के पथ पर अग्रसर है। आज आवश्यकता है कि इस देश की प्रत्येक नारी के मन में विदुषी जैसा उद्देश्य हो। अब विषय आता है इमरान प्रतापगढ़ी का...उसके लिए मैं अपने शब्द व्यर्थ बर्बाद नहीं करना चाहता क्यों कि मेरा मानना है कि करोड़ो के शब्दों को ऐसे मजहबी लोगों पर नष्ट नहीं किया जाना चाहिए।

आज कल एक परंपरा प्रचलन में है कि आप जिस क्षेत्र से जुड़े हैं उसके किसी अन्य व्यक्ति के विषय पर नहीं बोलते जैसे यदि कोई चैनल कुछ गलत दिखा रहा है तो उस चैनल की गलत रिपोर्ट के विरोध में कोई अन्य चैनल नहीं दिखाता।लेकिन  जब मैनें गौरव चौहान को सुना तो लगा कि कवि ऐसे होने चाहिए, जब और ज्यादा सुना तो मेरे मन में एक प्रश्न उठा कि मनमोहन से लेकर मोदी तक को सच का आइना दिखाने वाला एक ऐसा कवि जिसकी कविताएँ 12 घंटे में देश से विदेश पहुंच जाती हैं उसने इमरान प्रतापगढ़ी पर कभी कुछ क्यों नहीं लिखा। क्या इस लिए कि दोनों का व्यवसाय एक ही है। माफ करिएगा लेकिन जिस देश का साहित्य व्यवसाय हो जाए उस देश का पतन सुनिश्चित है।

गौरव भाई आप बड़े कवि हैं और मैं एक छोटा सा पत्रकार लेकिन अपने दायित्व का निर्वाहन करते हुए आपसे निवेदन करता हूं कि अपनी लेखनी का रुख एक बार उस व्यक्ति की ओर भी मोड़े जो खुले आम इस देश में शरियत और ओवैसी का समर्थन करता है। यदि अपना घर साफ होगा तभी हम देश स्वच्छ करने के विषय में सोच पाएंगे। माना कि इस देश में संवैधानिक आधार पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है परंतु स्वतंत्रता एवं स्वच्छन्दता का अंतर बनाए रखना बहुत आवश्यक है।

वन्दे भारती...

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