Friday 21 August 2015

ये आपको शोभा नहीं देता मोदी जी...



कल शाम एक स्वयंसेवक,  के आवास पर भोजन के लिए जाना हुआ। भोजन के पश्चात टीवी पर समाचार देखने लगा। उस समय मोदी और लालू के विषय पर समाचार चल रहे थे। उन समाचारों में अचानक एक तस्वीर सामने आई..वो तस्वीर थी मोदी के हाल ही के साउदी अरब के दौरे की...इस तस्वीर में मोदी अपने मोबाइल से शहजादों के साथ सेल्फी ले रहे थे।



मित्रों अब मैं अपने मूल विषय पर आता हूं। इस फोटो में मेरी नजर मोदी के मोबाइल पर गई...उनका मोबाइल फोन ऐपल कंपनी का था। शायद आपका ध्यान इस विषय पर न गया हो लेकिन मुझे इस बात से बहुत पीड़ा हुई कि देश का प्रधान एक विदेशी कंपनी का मोबाइल प्रयोग कर रहा है। ये बहुत ही छोटा और सामान्य विषय लग सकता है लेकिन इस विषय की गंभीरता को समझने का प्रयास करिए । जब हमारे देश का प्रधान विदेशी वस्तुओं के बिना नहीं रह सकता तो क्या भाजपा या केन्द्र सरकार को सामान्य व्यक्ति से यह अपेक्षा करनी चाहिए। इस विषय को मात्र मैं उस फोटो के कारण नहीं उठा रहा हूं अपितु पर्याप्त शोध के बाद इस विषय पर लेखन कर रहा हूं।

मित्रों मुझे भी अच्छा लगता है कि मैं भी सैमसंग का फोन प्रयोग करूं और करता भी था लेकिन एक दिन जब मैं दैनिक जागरण में कार्यरत अपने एक मित्र से स्वदेशी की बात कर रहा था तो उन्होंने कहा कि पहले आप तो विदेशी मोबाइल का प्रयोग करना बंद करो...उसकी बात सुनकर मुझे खुद पर शर्म आ गई। मुझे लगा कि जब मैं स्वयं ऐसा नहीं कर रहा तो दूसरों को ऐसा करने के लिए कैसे कह सकता हूं।

आज की स्थिति ये है कि मैं यथासंभव प्रयास करता हूं कि भारत में निर्मित वस्तुओं का प्रयोग करूं। आज मैं माइक्रोमैक्स और स्पाइस का मोबाइल प्रयोग करता हूं जबकि मुझे इसमें वो सुविधाएं नहीं मिलती जो सैमसंग या ऐपल में होती हैं लेकिन फिर भी करता हूं ताकि कोई मुझ पर प्रश्नचिन्ह न लगा पाए।

मोदी जी आप बहुतों के आदर्श हैं..आपके कपड़ो को देखकर बहुत से युवा वैसे ही कपड़े पहनने लगते हैं तो एक बार सोच कर देखिए कि आपके इस कदम से एक विदेशी कंपनी का कितना लाभ होगा। पिछले माह मेरे जन्मदिवस पर मेरे एक मित्र ने ब्लैकबेरी का मोबाइल उपहार स्वरूप भेजा। यदि वह मित्र मेरे सामने होता तो निश्चित ही मैं यह उपहार स्वीकार नहीं करता लेकिन मजबूरी में उपयोग कर रहा हूं....निश्चय ही इसके वैकल्पिक मार्ग हो सकते हैं लेकिन अगर मैं उनका प्रयोग नहीं करता तो शायद कोई फर्क न पड़े क्यों कि मैं इस देश का 125 करोड़वां हिस्सा हूं। लेकिन आप तो इस देश के प्रधान हैं आप से मैं और ये देश ऐसी अपेक्षा नहीं करता।

अपने विवेक और अनुभव के आधार पर मैं यह कह सकता हूं कि यदि इस देश का प्रत्येक व्यक्ति स्वदेशी वस्तुओं का प्रयोग करने लगे तो भारत को परम वैभव पर ले जाने की संकल्पना को साकार होने से कोई नहीं रोक सकता। यह बात मैं अपने अध्ययन के आधार पर कह रहा हूं। मेरा ऐसा मानना है कि यदि अंग्रेज इस देश से गए तो उसकी आधारशिला अरविन्द घोष, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, वीर सावरकर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक और लाला लाजपत राय के स्वदेशी आंदोलन से ही रखी गई थी।

अंत में इंदु जी की कविता की पंक्तियां उधार लेना चाहूंगा उन कलम के सिपाहियों के लिए जिन्होनें मुझसे पहले इस विषय को उठाना जरूरी नहीं समझा...

सच लिखना मुश्किल नहीं
सच पढ़ना बेहद कठिन
सच कहना भी मुश्किल नहीं
पर सच सुनना
उससे भी कठिन !
बस इसी खातिर
लिखा जाता रहा झूठ
कहा जाता रहा झूठ
अपनी सहूलियतों के लिए
ज़िंदगी के दुर्गम रास्तों पर
आसानी से चलता रहा झूठ
सच है कि सब झूठ है और
झूठ है कि सब सच !
सिवा इसके कि शब्दों के
वर्ण हैं सच
शब्दों के मायने ….बचे अब शेष नहीं ….!!!

परिवर्तन की अपेक्षा के साथ----
विश्व गौरव

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