Thursday 3 September 2015

तेरी याद आई है....

तेरी वो प्यारी सी मुस्कराहट याद आई है
खुद रोकर मुझे हँसाने की आदत याद आई है
तू नहीं है मेरे साथ अब शायद इसीलिए आज
अपनी वो बचपन वाली चाहत याद आई है।

तेरी हर एक अदा,तेरी एक एक बात
मुझे आज फिर से याद आई है
तेरी दोस्ती का वो वादा और फिर वादे से मुकर जाना
तेरी खुली जुल्फों की याद दिलाने आज ये रात आई है।

तू थी तो सब कुछ था पास मेरे
अब तू नहीं तो कुछ भी नहीं सिवाय मेरे
आज ही के दिन तू मिली थी मुझे 
उस लम्हे का एहसास दिलाने 
 मेरी जेब से तेरी तस्वीर निकल आई है।

तुझे बिना लालच के चाहा मैंने
और तुझे उस चाहत पर विश्वास नहीं है।
तेरा जिस्म ,तेरी बातें और तेरा गुरुर है कुछ खास
पर इसमें से कुछ भी स्थाई नहीं है...

तब तू भी थी पर तुझे एहसास नहीं था
अब एहसास है पर तेरा साथ नहीं है
तेरी कसमों पर तो यकीं न रहा
पर अपने राम पर विश्वास आज भी है।

मेरे विश्वास से आंख मिलाने तेरी याद आई है,
मेरे शब्दों को कविता बनाने तेरी याद आई है....

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