Thursday 10 September 2015

मांसाहार क्यों? - एक विवेचन




कभी कभी कुछ अल्पज्ञानी मुझसे कहते हैं कि विश्व गौरव जी ये बताइए कि आपके सनातन धर्म में तो मांसाहार प्रचलित है और आप नहीं खाते, ऐसा क्यों? वो कुछ मंदिरों का नाम गिनाकर कहते हैं कि आपके इन इन मंदिरों में तो मांस ही चढ़ाया जाता है तो आप क्यों मांस का विरोध करते है? ऐसे लोगों को उस समय तो मैं उत्तर दे देता हूं लेकिन आज मुझे लग रहा है कि ऐसे प्रश्न तो बहुत से लोगों के दिमाग में आते होगें। इस लिए आज इस विषय पर विस्तार से लिखने की योजना बनाई है।

किसी भी क्षेत्र की संस्कृति उसके प्राकृतिक वातावरण पर आधारित होती है। जिन स्थानों पर जिस चीज की पैदावार होती है वहां पर वही चीज खाई जाती है। हमारे शास्त्रों में तो यह भी कहा गया है कि पौधों में भी प्राण होते हैं तो क्या हम शाकाहारी मनुष्य हत्यारे नहीं हुए। मित्रों इस विषय को ठीक प्रकार से समझने के लिए हमें थोड़ा पीछे जाना पड़ेगा, उस समय में जब यातायात की व्यवस्था नहीं थी। दक्षिण भारत के क्षेत्र में समुद्र होने के कारण वहां के मुख्य भोजन में मछली का विशेष महत्व है। उत्तर भारत में मांस इस लिए प्रचलन में नहीं है क्यों कि वहां पर गेहूं इत्यादि की पैदावार अधिक है।

पिछले वर्ष रिपोर्टिंग के लिए कोलकाता जाना हुआ था, 10 दिनों के उस प्रवास में वहां पर गेहूं की रोटियां मिलना बहुत मुश्किल हो रहा था। दाल के नाम पर दाल का पानी ही मिलता था। तब मुझे पता चला कि आखिर यहां के क्षेत्र में मछली क्यों खाई जाती है। ये बहुत ही सामान्य सी बातें हैं जिन पर बिना चिंतन किए हम उसे धर्म से जोड़ देते हैं। चिंतन का विषय ये है कि उस समय जब यातायात की व्यवस्था नहीं थी तो लोंगो के मुख्य आहार के रूप में मछली इत्यादि को लिया जाता था। उस समय के जानवर और मनुष्य के अनुपात में और आज के मनुष्य और जानवर के अननुपात में चिंतन की आवश्यकता है।

आज जब सारी सुविधाएं उपलब्ध हैं तो हम क्यों मांसाहार को इतना अधिक महत्व दे रहे हैं ये चिंतन का विषय होना चाहिए।

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