Thursday 17 September 2015

एक सच जिसको जानकर आंखे खुल जाएंगी आपकी...

गणेश स्थापना क्यों?

इस देश की एक बड़ी समस्या है कि इस देश के लोगों ने सोचना बंद कर दिया है। उन्हें किसी भी परंपरा का इतिहास नहीं पता, बस जो चल रहा है उसका अनुसरण करते हुए चलते रहना है। उस परंपरा को प्रारंभ करने का उद्देश्य भी हमनें जानना जरूरी नहीं समझा। आज गणेश चतुर्थी है। महाराष्ट्र का सबसे बड़ा पर्व, उस पर्व का उत्साह यहां दिल्ली में भी देखने को मिल रहा है। घरों से लेकर विद्यालयों तक हर जगह गणेश प्रतिमा की स्थापना हो रही है। हर टीवी चैनल पर गणेश चतुर्थी से जुड़े कार्यक्रम दिखाए जा रहे हैं, लेकिन मैं सुबह से प्रतीक्षा करता रहा कि कोई इस गणपति उत्सव की स्थापना का उद्देश्य बताएं। सच कहूं तो इस देश के मीडिया संस्थानों से अधिक अपेक्षा मुझे सोशल मीडिया के क्रांतिकारियों से थी लेकिन मुझे एक भी पोस्ट ऐसे विषय से सम्बन्धित नहीं दिखी। इसी नाते अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए मैंने स्वयं इस विषय पर लिखने का मन बनाया।

मित्रों जब स्वदेशी शब्द हमारे कानों में पड़ता है तो सबसे पहले हमारे मस्तिष्क में महात्मा गांधी और खादी का नाम ध्यान में आता है। लेकिन क्या आपको पता है कि स्वदेशी से स्वतंत्रता का स्वप्न देखने वाले प्रथम क्रांतिकारी का नाम क्या था? उनका नाम था लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक। 1894 मे अंग्रेजों ने भारत में धारा 144 नाम का एक बहुत खतरनाक कानून बना दिया था।  इस कानून के तहत किसी भी स्थान पर 5 से अधिक भारतीय इकट्ठे नहीं हो सकते थे। वे समूह बनाकर कहीं प्रदर्शन नहीं कर सकते थे और अगर कोई ब्रिटिश पुलिस अधिकारी उनको कहीं इकट्ठा देख ले तो आप सोच भी नहीं सकते कि उनको कितनी कड़ी सजा दी जाती थी।

लोगों में व्याप्त भय को समाप्त करने के लिए लोकमान्य तिलक ने गणपति उत्सव की स्थापना की और सामान्य जनमानस में यह विश्वास दिलाया कि विघ्नहर्ता गणेश जी आपके सारे विघ्न हर लेंगे और अंग्रेजों से हमें मुक्ति दिलाएंगे। सबसे पहले पुणे के शनिवारवाड़ा मे गणपति उत्सव का आयोजन किया गया। 1894 से पहले लोग अपने अपने घरो मे गणपति उत्सव मनाते थे लेकिन 1894 के बाद इसे सामूहिक तौर पर मनाने लगे तो पुणे के शनिवारवाडा मे हजारों लोगों की भीड़ उमड़ी।
इस प्रकार पूरे 10 दिन तक 20 अक्तूबर 1894 से लेकर 30 अक्तूबर 1894 तक पुणे के शनिवारवाड़ा में गणपति उत्सव मनाया गया। हर दिन लोकमान्य तिलक वहां भाषण के लिए किसी बड़े व्यक्ति को आमंत्रित करते थे। 20 अक्तूबर को बंगाल के सबसे बड़े नेता बिपिन चंद्र पाल वहाँ आए और ऐसे ही 21 अक्तूबर को उत्तर भारत के लाला लाजपत राय वहाँ पहुंचे। वहां 10 दिन तक इन महान नेताओं के भाषण हुआ करते थे ! और सभी भाषणों का मुख्य मुद्दा यही होता था कि गणपति जी हमको इतनी शक्ति दें कि हम भारत से अंग्रेजों को भगाएं, गणपति जी हमें इतनी शक्ति दें कि हम भारत में स्वराज्य लाएं। तिलक जी के प्रयासों के कारण ही अगले वर्ष 1895 मे पुणे के शनिवारवाड़ा मे 11 स्थानों पर गणपति स्थापित किए गए, उसके अगले साल 31 और 1897 में संख्या 100 को पार कर गई। धीरे -धीरे पुणे के नजदीक महाराष्ट्र के अन्य बड़े शहरों अहमदनगर ,मुंबई ,नागपुर आदि तक में ये गणपति उत्सव फैलता गया। हर वर्ष हजारों लोग इकट्ठे होते और बड़े नेता उनमें राष्ट्रीयता की भावना भरने का कार्य करते।  इसी तरह लोगों का गणपति उत्सव के प्रति उत्साह बढ़ता गया और साथ में राष्ट्र के प्रति चेतना भी बढ़ती गई।

1904 में लोकमान्य तिलक ने लोगों से कहा कि गणपति उत्सव का मुख्य उद्देश्य स्वराज्य हासिल करना और अंग्रेजों को भारत से भगाना है। बिना आजादी के गणेश उत्सव का कोई महत्व नहीं है। तब पहली बार लोगों ने लोकमान्य तिलक के इस उद्देश्य को बहुत गंभीरता से समझा। तभी 1905 मे अंग्रेजी सरकार ने बंगाल का बंटवारा कर दिया। कर्जन नाम के अंग्रेज अधिकारी ने बंगाल को पूर्वी बंगाल और पश्चिमी बंगाल नामक दो हिस्सों मे बाँट दिया। हिन्दू और मूसलमान के आधार पर यह पहला बंटवारा था। डिविजन ऑफ बंगाल एक्ट नामक कानून के आधार पर यह विभाजन किया गया। बंगाल उस समय भारत का सबसे बड़ा राज्य था और इसकी कुल आबादी 7 करोड़ थी।

लोकमान्य तिलक ने इस बंटवारे के खिलाफ सबसे पहले विरोध की घोषणा की उन्होनें ने लोगों से कहा कि अगर अंग्रेज भारत में संप्रदाय के आधार पर बंटवारा करते हैं तो हम अंग्रेजों को भारत में रहने नहीं देंगे। उन्होने अपने एक मित्र तथा बंगाल के सबसे बड़े नेता बिपिन चंद्र पाल को बुलाया साथ ही उन्होंने एक अन्य नेता अरबिंदो घोष जी को बुलाया और उन्हें कहा कि आप बंगाल मे गणेश उत्सव का आयोजन कीजिए। तो बिपिन चंद्र पाल जी ने कहा कि बंगाल के लोगों पर गणेश जी का प्रभाव ज्यादा नहीं है,  तो तिलक जी ने पूछा फिर किसका प्रभाव है ? तो उन्होनें कहा कि बंगाल में नवदुर्गा नामक एक उत्सव मनाया जाता है उसका बहुत प्रभाव है। तब तिलक जी ने कहा ठीक है मैं यहाँ गणेश उत्सव का आयोजन करता हूँ आप वहाँ दुर्गा उत्सव का आयोजन करिए। तभी से बंगाल मे समूहिक रूप से दुर्गा उत्सव मनाना शुरू हुआ जो आज तक जारी है।

लोगों ने तिलक जी से पूछा कि विरोध का तरीका क्या होगा? तो लोकमान्य तिलक ने कहा कि भारत में अंग्रेजी सरकार ईस्ट इंडिया कंपन्नी की मदद से चल रही है। ईस्ट इंडिया कंपनी का माल जब तक भारत मे बिकेगा तब तक अंग्रेजों की सरकार भारत मे चलेगी और अगर माल बिकना बंद हो गया तो अंग्रेजों के पास धन जाना बंद हो जाएगा और अंग्रेज भारत से भाग जाएँगे।
तब वहां पर एक आंदोलन शुरू हुआ। उस आंदोलन के प्रमुख नेता थे लाला लाजपतराय (उत्तर भारत), विपिन चंद्र पाल (बंगाल और पूर्व भारत) और लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक (पश्चिम भारत)। इस तीनों नेताओं ने अंग्रेजों के बंगाल विभाजन का विरोध शुरू किया।

लोकमान्य तिलक ने अपने शब्दों में इसको स्वदेशी आंदोलन कहा। अँग्रेजी सरकार इसे बंग भंग आंदोलन कहती रही। उस समय इन तीन नेताओं के आवाह्न पर करोड़ों भारत वासियों ने अंग्रेजी कपड़े पहनना बंद कर दिया, भारत के हजारों नाईयों ने अंग्रेजी ब्लेड से दाड़ी बनाना बंद कर दिया,  यहां तक कि विदेश से आने वाली चीनी का बहिस्कार करके इस देश में गुड़ की मिठाइयां बनने लगीं। इसी आंदोलन के आगे झुकते हुए अंग्रेजों ने 1911 में डिविजन ऑफ बंगाल एक्ट वापिस लियाऔर इस तरह पूरे देश मे लोकमान्य तिलक की जय जयकार होने लगी।
आज हम गणेश उत्सव तो मनाते हैं लेकिन विदेशी वस्तुओं का साथ नहीं छोड़ते। और तो और हम तो अपनी खुशी के लिए गणपति को टाई भी पहनाने लगे। मित्रों यदि वास्तविक स्वराज्य चाहिए तो मेरे निवेदन को स्विकार करें और विदेशी वस्तुओं को बहिस्कार करते हुए गणपति स्थापना की सार्थकता प्रमाणित करें।
वन्दे भारती।

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