Friday 30 October 2015

यही तो है घोर कलियुग...




दोस्तों अभी कुछ दिन पहले विजयादशमी का पर्व बीता। पौराणिक मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीराम ने राक्षसों के राजा रावण का वध किया था। रावण दहन का अर्थ है कि हम हमारे अंदर की बुराइयों का अंत कर भगवान श्रीराम के आदर्शों पर चलने की कोशिश करें लेकिन सोशल मीडिया पर कुछ और ही दिख रहा है मेरे पास कई संदेश आए जिसमें यह जताने का प्रयास किया गया कि अगर हम आज रावण भी बन जाएं तो बेहतर हैं। मेरे पास एक संदेश आया कि रावण में अहंकार लेकिन पश्चाताप भी था, रावण में वासना के साथ संयम भी था, रावण में सीता के अपहरण की ताकत थी साथ ही बिना सहमति परस्त्री को स्पर्श भी न करने का संकल्प भी था। इस प्रकार से रावण की महिमा मंडित किया जाना मुझे अच्छा नहीं लगा तो मैंने सोचा कि इस विषय पर कुछ लिखा जाए।

मेरे एक मित्र ने संदेश भेजा कि सीता जीवित मिली यह निश्चित रूप से श्रीराम की ताकत थी, परन्तु वह पवित्र मिली यह रावण की मर्यादा थी। क्या शानदार विश्लेषण था उनका। किसी ने कहा है कि अधूरा ज्ञान विनाश की जड़ होता है। बिना अध्ययन के इस प्रकार के विषयों को समाज में फैलाना एक राष्ट्रीय अपराध है। रावण ने सीता को बलपूर्वक इसलिए हाथ नहीं लगाया क्योंकि उसे कुबेर के पुत्र नलकुबेर ने श्राप दिया था कि यदि रावण ने किसी स्त्री को उसकी इच्छा के विरुद्ध अनैतिक कामेच्छा से छुआ या अपने महल में रखा तो तेरे सिर के सौ टुकड़े हो जाएंगे। रावण ने कुबेर की पत्नी के साथ बलात्कार किया था । इसी डर के कारण रावण ने ना तो सीता को कभी बलपूर्वक छूने का प्रयास किया और न ही अपने महल में रखा। इतना ही नहीं रावण ने अपनी पत्नी की बड़ी बहन माया के साथ छल किया था। माया के पति वैजयंतपुर के शंभर राजा थे। एक दिन रावण शंभर के यहां गया। वहां रावण ने माया को अपने वाक्जाल में फंसा लिया। इस बात का पता लगते ही शंभर ने रावण को बंदी बना लिया। उसी समय शंभर पर राजा दशरथ ने आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में शंभर की मृत्यु हो गई। जब माया सती होने लगी तो रावण ने उसे अपने साथ चलने को कहा। तब माया ने कहा कि तुमने वासनायुक्त होकर मेरा सतित्व भंग करने का प्रयास किया। इसलिए मेरे पति की मृत्यु हो गई, अत: तुम्हारी मृत्यु भी इसी कारण होगी।

कुछ लोग तो रावण जैसा भाई बनने तक की सलाह दे देते हैं। उनका मानना है कि बहन के अपमान का बदला लेने के लिए सीता का हरण किया और अपनी बहन के लिए अपने पूरे कुल की कुर्बानी दे दी। जबकि यह सत्य नहीं है। रावण ने अपनी बहन के अपमान का बदला लेने के लिए सीता का अपहरण नहीं किया बल्कि इसलिए किया क्योंकि वह कामांध था। उसने अपने पूरे जीवनकाल में 70 से भी ज्यादा स्त्रियों के साथ बलात्कार किया था जिनमें कुबेर की पत्नी आख़िरी थी। जब शूर्पणखा ने रावण के सामने सीता की सुंदरता का वर्णन किया, तो उसके मन में सीता को प्राप्त करने की लालसा जाग उठी। इसलिए रावण ने सीता का हरण किया। और रावण की बहन शूर्पणखा ने यूं ही रावण के समक्ष सीता के विषय में नहीं बताया था अपितु इसके पीछे भी एक रहस्य था। शूर्पणखा के पति का नाम विद्युतजिव्ह था।  वह कालकेय नाम के राजा का सेनापति था। रावण जब विश्वयुद्ध पर निकला तो कालकेय से उसका युद्ध हुआ। उस युद्ध में रावण ने विद्युतजिव्ह का भी वध कर दिया। इस कारण से श्री राम और लक्ष्मण की वीरता को देखते हुए उसने रावण से अपना बदला लेने के लिए यह खेल खेला।

कुछ लोगों का मानना है कि रावण अजेय योद्धा था। वह अपने जीवन में कभी किसी से नहीं हारा। जबकि ये बात पूरी तरह से गलत है। रावण राम के अलावा पाताल लोक के राजा बलि, महिष्मति के राजा कार्तवीर्य अर्जुन, वानरराज बालि और भगवान शिव से पराजित हो चुका था। वह कोई शिव भक्त नहीं था बल्कि उसे पता था कि जिनसे जिनसे वह पराजित हुआ है उनमें एकमात्र शिव ही ऐसे हैं जो अजर अमर हैं इस नाते वह शिव जी का सम्मान करता था। इस सम्मान को यदि डर का नाम दिया जाए तो भी गलत नहीं होगा। वह जब बैजनाथ का शिवलिंग लेकर जा रहा था, तब उसे लघुशंका आई, उसने ब्राह्मण के रुप में आए विष्णु को शिवलिंग थमा दिया और खुद निवृत्त होने चला गया। विष्णु ने शिवलिंग वहीं जमीन पर रख दिया। जब रावण आया और उसने शिवलिंग को उठाने की कोशिश की लेकिन वह नहीं हिल सका तो रावण ने गुस्से में शिवलिंग पर मुठ्ठी से प्रहार कर दिया, जिससे शिवलिंग आधे से ज्यादा जमीन में धंस गया। मैं मानता हूं कि रावण विद्वान था, लेकिन उसने अपने ज्ञान को कभी व्यवहारिक जीवन में नहीं उतारा। लाखों ऋषियों का वध किया, कई यज्ञों का ध्वंस किया और महिलाओं का अपहरण करके उनका बलात्कार किया। रावण ने रंभा नामक अप्सरा से भी बलात्कार किया था। रावण ने वेदवती नाम की एक ब्राह्मणी के रूप से प्रभावित होकर उनसे भी बलात्कार करने का प्रयास किया लेकिन उन्होंने किसी प्रकार से स्वयं को बचाकर आत्मदाह कर लिया। हो सकता है कि आप कहें कि यदि रावण शिव भक्त नहीं था तो शिव जी ने रावण को सोने की लंका क्यों दी लेकिन दोस्तों यह सत्य नहीं है। सत्य यह है कि लंका का निर्माण देवताओं के शिल्पी विश्वकर्मा ने किया था। उसमें सबसे पहले राक्षस ही निवास करते थे। भगवान विष्णु के भय से जब राक्षस पाताल चले तो लंका सूनी हो गई। रावण के बड़े भाई (सौतेले) ने अपनी तपस्या से भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न कर लिया। ब्रह्मा ने उसे लोकपाल बना दिया और सोने की लंका में निवास करने के लिए कहा। जब रावण विश्व विजय पर निकला तो उसने कुबेर से सोने की लंका व पुष्पक विमान भी छीन लिया और उसकी पत्नी से बलात्कार किया। फिर रावण ने वहां राक्षसों का राज्य स्थापित किया।
मित्रों इस प्रकार की बातें वे लोग करते हैं जिन्होंने कभी रामायण पढ़ने की कोशिश तक नहीं की। उनकी सम्पूर्ण रामायण मात्र स्व. रामानन्द सागर के धारावाहिक और चचा की विचारधारा वाली पाठ्यपुस्तकों तक ही सीमित है और जो थोड़ी बहुत रही सही कसर थी वह वामपंथी तथाकथित इतिहासकारों ने पूरी कर दी। इसी का परिणाम है कि स्थिति ऐसी बन गई कि लोगों को रावण बनने का प्रवचन दिया जाने लगा, नमस्ते के स्थान पर कई लोग जय लंकेश कहा जाने लगा। हम कहते हैं कि राम एक चरित्र हैं तो उसी प्रकार रावण एक दुष्चरित्र है इसलिए लाखों साल से हिन्दू रावण और बुराई को पर्यायवाची मानते आये हैं किन्तु आज कुछ बुद्धि भ्रष्ट लोगों को प्रभु श्रीराम के निर्मल चरित्र के स्थान पर रावण अधिक प्रेरणास्पद लगता है। आपसे निवेदन है कि इस दुष्चक्र में आप न फंसें। राम बनें, राम का जन्म रावण यानी बुराई को अच्छा ठहराने के लिए नहीं अपितु रावण का संहार करने के लिए हुआ था।

वन्दे भारती


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