Friday 13 November 2015

आत्मविश्लेषण भाग-1


आज पत्रकारिता के क्षेत्र के एक महान व्यक्तित्व से बातचीत हुई। उनकी बातों ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि फेसबुक या ट्विटर पर मैं जो कुछ भी लिखता हूं क्या वह उसे पढ़नें वालों तक उसी रूप में पहुंचता है। उनसे चर्चा के बाद इस विषय पर मैंने अपने कई सोशल मीडिया के मित्रों से बात की। उनमें से जो लम्बे समय से मुझसे जुड़े थे उन्होंने तो वही बातें कहीं जो मैं सोचता हूं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो उन बातों को नकारात्मक रूप में ले लेते हैं। मैं क्या हूं? मैं क्या सोचता हूं? मेरे विचारों का आधार क्या है? इन बातों को मुझ से बेहतर कोई नहीं समझ सकता। मैं जब भी मोदी या भाजपा के खिलाफ लिखता हूँ तो लोग उसे दिखावा करार देते थे, लोग कहते थे कि विश्व गौरव जी आप पत्रकारिता से जुड़ गए इस लिए खुद को निष्पक्ष साबित करने के लिए यह सब लिख रहे हो।

 


यहां तक कह दिया जाता है कि तुम सेक्युलर बन रहे हो। मैं कभी सेक्युलर बनने की कोशिश नहीं करता, बल्कि मेरी कोशिश रहती है कि मैं धर्मपरायण बनूं। पत्रकारिता मेरा धर्म है और उस धर्म को निभाते हुए यदि सत्ता के सिंहासन पर बैधा व्यक्ति कुछ गलत करता है तो मैं उसकी आलोचना करता हूं।
दोस्तों इस देश के अंदर जितनी भी समस्याएं चल रही हैं उन सबका एक मात्र कारण है संवाद की कमी। मैंने पहले भी लिखा है कि डायलॉग बहुत जरुरी है। मेरा मानना यह है कि यदि आप बात ही नहीं करेंगे, संवाद ही नहीं करेंगे तो आपको अपनी वास्तविकता या आपकी कार्यपद्धति के वास्तविक प्रभाव का पता कैसे चलेगा? आप एक ओर कहते हो मदरसों में आतंकवाद पढ़ाया जाता है दूसरी ओर उन्हीं मदरसों से एपीजे अब्दुल कलाम निकलते हैं।

आप कहते हो आरएसएस आतंकवादी संगठन है, उसी संगठन का एक स्वयंसेवक विदेशों में इस देश का प्रतिनिधित्व कर रहा है। यदि इन दोनों बातों को कहने वाले लोगों के बीच में संवाद रहा होता तो शायद इस देश को और भी कई कलाम और मोदी मिल जाते। इस दुनिया में मात्र दो पक्ष होते हैं सत्य और असत्य। सत्य की ओर खड़ा व्यक्ति मदरसों से भी निकल सकता है और असत्य की ओर खड़ा होने वाला व्यक्ति अर्थात अपने पूर्वजों के नाम पर राजनीति करने वाला, उनकी कसमें खाने वाला, उन्हें एक मुद्दा बना देने वाला व्यक्ति भी संघ का एक तथाकथित स्वयंसेवक हो सकता है।



पढ़ें: नितिन गडकरी से एक सवाल

मेरे विचार एकदम स्पष्ट हैं कि यदि वास्तव में हम चाहते हैं कि भारत विश्वगुरु के पद पर पुनर्स्थापित हो तो उसके लिए हमें अपने विवेक का उपयोग करना होगा। रावण के राज्य में भी विभीषण को इतनी स्वतंत्रता थी कि वह श्री राम के भजन करते थे। किसी भी पूजा पद्धति पर आघात गलत होगा। बेहतर होगा कि सभी पूजा पद्धतियों से राष्ट्र को सर्वोपरि, मानवता को सर्वोपरि मानने वाले लोग एक ओर और अन्य किसी शक्ति में विश्वास रखने वाले लोग दूसरी ओर रहें। इस संस्कृति ने सभी को समाहित किया है अपितु इस वर्त्तमान भारत में ही हजारों तरह की संस्कृतियाँ आज भी हैं। हमें विविधताओं का देश कहा जाता है। कुछ विविधताओं को और स्वीकार करो और उन सभी में जो उचित और आवश्यक लगे उसे अपनाकर स्वयं को और मजबूत करो। हम सब में बराबर शक्ति है बस आवश्यकता है उसे पहचानने की। अगर अपनी ऊर्जा का दुरप्रयोग कर दिया जो हमारी आने वाली पीढ़ी हमें गालियां देगी। अकेला मोदी कुछ नहीं करेगा, हम सबको एक साथ मिलकर काम करना होगा। प्रत्येक पूजा पद्धति के अच्छे लोगों को काम करना होगा।

अभी एक पोस्ट के कमेंट बॉक्स में दो वर्ग बंटे हुए थे, एक कह रहा था कि हिन्दू एक हुआ है तब मोदी आए दूसरा कह रहा था अगर मुसलमानों ने वोट नहीं दिया होता तो मोदी नहीं आते।
मैंने दोनों पक्षों के लोगों को व्यक्तिगत सन्देश भेजकर पूछा कि क्या आपके मोदी जी के स्वच्छ भारत अभियान या जन धन योजना की 100 प्रतिशत सफलता बिना मुस्लिमों के सहयोग के हो जाएगी और क्या बिना एक भी हिंदू के सहयोग के इस देश के पूरे मुसलमान एक होकर किसी व्यक्ति को प्रधानमंत्री बना सकते हैं। दोनों का जवाब ना ही है। आज जब एक होने का समय है तो एक हो जाओ। जब तक एक नहीं होगे तब तक भारत को विश्व गुरु बनाने के बारे में सोचना मात्र छलावा है।
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि सत्ता के साथ विपक्ष भी पूर्ण रूप से साथ खड़ा हो। दोस्तों, एक बार सोच कर देखो कि अगर प्रधानमंत्री जन धन योजना या स्वच्छ भारत अभियान शुरू करते हैं और सोनिया गांधी,राहुल,मुलायम,लालू नितीश सब यह कह दें कि सभी को अकाउंट खुलवाना है या सफाई करनी है तो इन योजनाओं का पूरा होना कितना आसान हो जाएगा।





विपक्ष का काम विरोध करना नहीं होता, विपक्ष का काम सत्ता पक्ष को भटकने से बचाने का होता है। मात्र 31 प्रतिशत वाला जो कह दे वह सही,इसको आधार मानकर नहीं चलना होगा। 69 प्रतिशत के वर्ग के सहयोग की आवश्यकता अवश्य पड़ेगी। मैं संघ का स्वयंसेवक हूँ, हालांकि काम की वजह से नियमित शाखा नहीं जा पाता लेकिन 14 वर्ष के स्वस्तरीय सक्रिय कार्य और संघ के वर्गों से यही सीखा है कि सत्य के साथ खड़े रहना है। संघ के वर्ग में एक बार तत्कालीन सरसंघचालक पूजनीय सुदर्शन जी ने कहा था कि यदि कांग्रेस हमारे विचारों का समर्थन करे तो हम उसके साथ हैं। डॉक्टर साहब ने भी कांग्रेस में काम किया था और जब विचार पसंद नहीं आए तो छोड़ दिया। संघ के इस विचार को मानता हूँ कि यदि कोई अच्छा कर रहा है तो उसे अंगीकार करो। मात्र इस लिए आप उसके अच्छे कामों का  विरोध शुरू कर दो क्यों कि वह आपका समर्थक नहीं है। ऐसा करना निश्चय ही गलत होगा।

पढ़ें: अब बस करो ओवैसी, नहीं तो...

दोस्तों, इस देश का सांस्कृतिक आधार श्री राम,कृष्ण और हरिश्चंद्र हैं यदि वास्तव में आप संस्कृति के संरक्षक हो तो उनके समय में एक दूसरे के प्रति जैसा प्रेम और जैसा विश्वास था वैसा पैदा करो। इसे और आसानी से समझिए श्री राम के समय कार नहीं थी तो क्या आप संस्कृति के नाम पर कार नहीं चलाओगे? कार चलाओ लेकिन अपने मन में माता पिता के प्रति श्री राम जैसा आदर रखो। राम को अपने जीवन में उतारो और जिस दिन राम इस देश के नागरिकों के मन में उतर जाएँ उस दिन मंदिर बनाओ और दुनिया के सामने कहो कि देखो हम अपने आदर्शों, अपने पूर्वजों के आदर्शों पर चल रहे हैं। हमने राम को पढ़ा तो लेकिन समझा नहीं। हम कहते रहे कि राम कोई व्यक्ति नहीं एक चरित्र हैं लेकिन कभी इस चरित्र को जीवन में उतरने का प्रयास नहीं किया।

दोस्तों, संवाद की कमी तब महसूस होती है जब इस देश का प्रधानमंत्री यूके जाता है और वहां पर प्रेस वार्ता में एएनआई के पत्रकार को यह सोचकर प्रश्न पूछने के लिए कहता है कि यह मेरे देश का पत्रकार है, यह इस समय मेरे लिए देश की आवाज है और देश के लिए मेरी आवाज, तो यह जो भी पूछेगा देश के हित में पूछेगा लेकिन हमारे पत्रकार साहब मोदी जी के समक्ष असहिष्णुता का मुद्दा उठाते हैं। जिस स्थान पर पूरे विश्व का मीडिया हो वहां पर देश की आतंरिक स्थिति पर देश के प्रधानमंत्री को कटघरे में खड़ा कर देना उन पत्रकार महोदय का कैसा दायित्व है। जितना मोदी ने असहिष्णुता के मुद्दे पर वहां बोला कि मेरे लिए हर एक घटना महत्व रखती है उतनी बात अगर यहाँ बोल देते तो शायद आधी समस्याओं का समाधान हो जाता। पत्रकार का काम देश में और देश के बाहर जनता और सत्ता के बीच सकारात्मक सोच के साथ सेतु का काम करना है। एएनआई के पत्रकार यदि भारत में मोदी जी की एक बाइट लेकर चला देते तो शायद आज तथाकथित 'असहिष्णुता' कोई मुद्दा ही ना होता।

आत्मपरीक्षण भाग- 2 पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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