Friday 13 November 2015

आत्मपरीक्षण भाग- 2


आत्मपरीक्षण भाग- 1 से आगे...

दोस्तों, हिंदू कभी आतंकी नहीं हो सकता, हिंदुत्व कट्टर नहीं है, हिंदुत्व वीर है। जो कट्टरता की बात करे वो हिन्दू नहीं है। यह बात मैं उसी आधार पर कह रहा हूँ जिस आधार पर मैं यह कहता हूँ कि आतंकवादी मुसलमान नहीं हो सकता। बिना गीता पढ़े , बिना उसका अनुपालन किए हम स्वयं को कृष्ण के वंशज कहलाने के अधिकारी नहीं हैं। गीता में स्पष्ट लिखा है कि धर्म युद्ध में निरपेक्षता का कोई स्थान नहीं है। आज आवश्यकता धर्म निरपेक्षता की नहीं धर्म परायणता की है लेकिन धर्म परायण होने के लिए धर्म का मूल चरित्र समझ लें।


धर्म को पूजा पद्धति समझ लिया तो गीता का पूरा सिद्धांत फेल हो जाएगा। आपका दायित्व की आपका धर्म है, मेरा राष्ट्र के प्रति एक पत्रकार के रूप में बिना किसी प्रतिबद्धता के विषय रखना ही धर्म है। माता पिता के प्रति उनके बेटे के रूप में उन्हें अपेक्षानुरूप सुविधाएँ एवं आत्मिक शांति देने का प्रयास करना ही मेरा धर्म है। विद्यार्थी के प्रति एक गुरु के रूप में अपने ज्ञान को बिना किसी लालच और अपेक्षा के विस्तृत करना ही मेरा धर्म है। अपने छोटे भाई के प्रति एक बड़े भाई के रूप में उसे अपने अनुभव के आधार पर सही गलत का रास्ता दिखाना ही मेरा धर्म है। परिस्थिति के अनुरूप धर्म बदल जाता है लेकिन धर्म का मूल चरित्र नहीं बदलता। धर्म की बहुत ही सुंदर व्याख्या मनुस्मृति में की गई है। मनु स्मृति में मनु कहते है:
आहार-निद्रा-भय-मैथुनं च समानमेतत्पशुभिर्नराणाम् । धर्मो हि तेषामधिको विशेषो धर्मेण हीनाः पशुभिः समानाः ॥

अर्थात अगर किसी मनुष्य में धार्मिक लक्षण नहीं है और उसकी गतिविधी केवल आहार ग्रहण करने, निंद्रा में,भविष्य के भय में अथवा संतान उत्पत्ति में लिप्त है, वह पशु के समान है क्योंकि धर्म ही मनुष्य और पशु में भेद करता हैं|
इसके आगे मनु धार्मिक शब्द की व्याख्या करते हैं। मनु स्मृति में मनु आगे कहते है कि

धृति क्षमा दमोस्तेयं, शौचं इन्द्रियनिग्रहः । धीर्विद्या सत्यं अक्रोधो, दसकं धर्म लक्षणम ॥


धृति = प्रतिकूल परिस्थितियों में भी धैर्य न छोड़ना , अपने धर्म के निर्वाह के लिए
क्षमा = बिना बदले की भावना लिए किसी को भी क्षमा करने की
दमो =  मन को नियंत्रित करके मन का स्वामी बनना
अस्तेयं = किसी और के द्वारा स्वामित्व वाली वस्तुओं और सेवाओं का उपयोग नहीं करना, यह चोरी का बहुत व्यापक अर्थ है , यहाँ अगर कोई व्यक्ति किसी और व्यक्ति की वस्तुओं या सेवाओं का उपभोग करने की सोचता भी है तो वह धर्म विरूद्ध आचरण कर रहा हैं
शौचं = विचार, शब्द और कार्य में पवित्रता
इन्द्रियनिग्रहः= इंद्रियों को नियंत्रित कर के स्वतंत्र होना
धी = विवेक जो कि मनुष्य को सही और गलत में अंतर बताता हैं
र्विद्या = भौतिक और अध्यात्मिक ज्ञान
सत्यं = जीवन के हर क्षेत्र में सत्य का पालन करना, यहाँ मनु यह भी कहते है कि सत्य को प्रमाणित करके ही उसे सत्य माना जाए
अक्रोधो = क्रोध का अभाव क्योंकि क्रोध ही आगे हिंसा का कारण होता हैं
यह दस गुण मनुष्य को पशुओं से अलग करते हैं। यदि किसी व्यक्ति में यह गुण नहीं हैं तो वह मनुष्य कहलाने का अधिकारी नहीं है। इन 10 गुणों का अनुपालन करने वाला व्यक्ति ही धार्मिक कहा जाता है। इस प्रकार के धर्म के प्रति परायणता परम आवश्यक है और मुझे लगता है कि किसी भी पूजा पद्दति को मानने वाला व्यक्ति इन गुणों को सांप्रदायिक या कट्टर नहीं कहेगा।

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दोस्तों,12 जुलाई 2013 को रायटर्स को दिए गए एक साक्षात्कार में नरेन्द्र मोदी जी ने कहा कि वह हिंदू राष्ट्रवादी हैं। उस दिन के बाद से ही मैंने सोशल मीडिया पर उनके समर्थन में लिखना शुरू किया। 20 जून 2011 को मैंने फेसबुक पर विश्व गौरव राष्ट्रवादी हिन्दू नाम से अपना एक पेज बनाया था। मेरे लिए हिंदू और राष्ट्रवाद की परिकल्पना पूर्णतः स्पष्ट थी। मैं हिन्दू शब्द को एक राष्ट्रीयता मानकर कर स्वयं को हिन्दू कहता हूं। जहां तक रिलिजन की बात है तो इस शब्द में मेरा विश्वास नहीं है। रिलीजन तो विभेद पैदा करता है और धर्म विभेद समाप्त करने का। मैं धार्मिक हूं और अपेक्षा करता हूं कि यदि धर्म की इस वास्तविक परिकल्पना को तथाकथित नास्तिक ने समझ लिया तो वह स्वयं को धार्मिक ही मानेगा। फिर वह कभी यह नहीं कहेगा कि वह नास्तिक है। हम अपने विषय को स्पष्ट नहीं कर पा रहे हैं इसका एकमात्र कारण है संवाद की कमी। संवाद होते रहना चाहिए, संवाद के बिना यह दुनिया समाप्त हो जाएगी।

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मैं संघ के वर्गों में भी गया हूं, शारीरिक से अधिक बौद्धिक विषयों पर ध्यान दिया। विद्यार्थी जीवन में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद में काम किया। विद्यार्थियों का नेतृत्व करने की जिम्मेदारी मिली तो विद्यार्थी नवजागृति मंच में प्रदेश प्रवक्ता, राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष के दायित्व का निर्वहन किया। बाबा जी भाजपा और चाचा जी सपा से जुड़े हैं इस नाते राजनीति को समझने का अवसर मिला। कई करीबी परिचित कांग्रेस और वामपंथी संगठनों से भी जुड़े हैं इस लिए उनको भी समझा। दोस्तों लेकिन इन सभी विचारधाराओं को उसी रूप में स्वीकार नहीं किया जैसी यह प्रदर्शित होती हैं। इनके बारे में पढ़ा, मैंने दीनदयाल जी के साथ मार्क्स और लेनिन को भी पढ़ा। मैनें एक लड़की से प्रेम भी किया, उसके दूर जाने के बाद आज भी शायरियां लिखता हूं लेकिन एक प्रेमी के रूप में मैंने रांझा, महिवाल को आदर्श नहीं माना। मेरे प्रेम के आदर्श श्री राम बने जिन्होंने अपने प्रेम की रक्षा के लिए समुद्र पर भी पुल बना दिया।

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दोस्तों, मैं यह नहीं कहता कि आप मेरे विचारों से पूर्णतः सहमत हों लेकिन मैं इतना जरूर चाहता हूं कि अपने विवेक का इस्तेमाल करके विषयों का विश्लेषण अवश्य करें.... विषय मात्र इतना है कि भक्ति ठीक है लेकिन अंधभक्ति उचित नहीं। दोस्तों, बस इतना याद रखना कि अगर इंग्लैंड के पास अतीत की शक्ति है, अगर जापान के पास तकनीक की शक्ति है, अगर चीन के पास श्रम की शक्ति है, अगर अमेरिका के पास डॉलर की शक्ति है तो भारत के पास मात्र परिवार और संस्कार की शक्ति है। हमने अगर अपनी इस शक्ति को खो दिया तो संभव है कि हम अमेरिका, चीन और जापान जैसे बन जाएं लेकिन इतना याद रखना आज से 100 साल के बाद आपकी उस समय की पीढ़ी के बारे में यही कहा जाएगा कि इनका देश बिलकुल चीन,अमेरिका या जापान जैसा है। कोई यह नहीं कहेगा कि इनका देश भारत है। दोस्तों, भारत को अमेरिका, जापान, चीन नहीं बल्कि भारत बनाने के लिए एक जुट हो जाओ...
वन्दे भारती




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