Wednesday 25 November 2015

कुमार जी, उन्हें 'भक्त' मत कहो...


दोस्तों, हम सभी एक नाम से परिचित हैं, एक ऐसा नाम जिसने राजनीति की एक नई परिभाषा दी, जो खुद को चाणक्य कहता है, जो यह मानता है कि देश सर्वोपरि है, जो राष्ट्रवाद की उस परिभाषा का समर्थन करता है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की वैचारिक आधार है। जी हां, मैं बात कर रहा हूं कवि कम राजनेता कुमार विश्वास की...कल मैं उनका एक कवि सम्मेलन सुन रहा था। उस कवि सम्मेलन में कवि कुमार बहुत गर्व से बोल रहे थे कि मैंने राहुल गांधी को एक नाम दिया था और उसे उस नाम (पप्पू) से अब पूरा देश पुकारता है। उसके आगे उन्होंने एक बात और कही, उन्होंने कहा कि मैंने एक विशेष वर्ग को 'भक्त' नाम दिया और उस संबोधन से पूरा देश आज उस वर्ग को संबोधित करता है। दोस्तों, व्यक्तिगत रूप से मैं उनका प्रशंसक हूं लेकिन मुझे 'भक्त' शब्द से आपत्ति है।

भक्त तो अर्जुन थे जिनके भक्ति भाव के कारण एक पेड़ के तने में भी भगवान शिव प्रतिष्ठित होकर पांडवों के सामने अर्जुन को झुकने नहीं देते। भक्त तो प्रहलाद थे जिनके लिए भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया। भक्त तो सखुबाई थी जिसकी पुकार को सुनकर भगवान ने एक स्त्री का रूप धारण कर लिया। भक्त तो अंबरीश थे जिनके सम्मान की रक्षा के लिए भगवान विष्णु ने ऋषि दुर्वासा के अहंकार को तोड़ते हुए यह प्रमामित किया यदि भक्त सही हो तो भगवान उसकी सहायता अवश्य करते हैं। भक्त तो हनुमान थे जिन्होंने अपनी भक्ति के बल पर समुद्र के अहंकार को तोड़ दिया। और आप आज के इन लालची, घमंडी तथा विवेकहीन   लोगों को भक्त कहते हैं। कुमार जी, यदि यह लोग भक्त नहीं हो सकते क्यों कि भक्ति तो भगवान की की जाती है। जहां तक बात नरेन्द्र मोदी की है तो मैं स्वयं उनका समर्थक हूं, मैंने भी उन्हें प्रधानमंत्री बनाने के लिए भजपा को वोट दिया था लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि यदि वे कुछ गलत करें अथवा किसी विषय पर शांत बैठे रहें तो मैं भी शांत बैठूं अथवा उनका समर्थन करूं। यदि मैं ऐसा करता हूं तो मैं उस ईश्वर का विरोध कर रहा हूं जिसने मुझे विवेक दिया, जिसने मुझे सोचने समझने की शक्ति दी। जहां पर देश की सत्ता अच्छा काम करे वहां पर उसका उत्साहवर्धन करना देश के प्रत्येक नागरिक का दायित्व है, भले ही उसने उसके पक्ष में मतदान ना किया हो और जहां पर सत्ता गलत करे वहां पर आलोचना करना भी उतना ही बड़ा दायित्व है। सरकार किसी एक पार्टी की नहीं होती अपितु देश के प्रत्येक नागरिक की होती है, जब हम यह मान लेंगे तभी सरकार का समर्थन या आलोचना कर पाएंगे। 
 
मैं संघ का स्वयंसेवक हूं और संघ के संस्थापक डॉ. हेडगावार ने जिस कार्यशैली को अपनाया था वह सनातन का आधार थी। वह व्यक्ति पूजा से कोसों दूर थी। आज के तथाकथित स्वयंसेवक उस सनातन संस्कृति से कोसो दूर जाते हुए क्यों व्यक्ति पूजा को महत्व दे रहे हैं यह समझ पाना मेरे बस से बाहर है। यह वह देश है जहां यदि आप श्री राम के लिए भी यदि अपने राष्ट्र से द्रोह करते हैं तो भी आपको यह संस्कृति माफ नहीं करती। संघ तत्व पूजा में करता है , व्यक्ति पूजा में नहीं। व्यक्ति शाश्वत नहीं , समाज शाश्वत है। इसी विचार के साथ अंधभक्ति छोड़कर यदि राष्ट्र को पुनः विश्वगुरू के पद पर प्रतिष्ठित करने के लिए कार्य करें तो शायद राष्ट्र को परम वैभव पर ले जाने का उद्देश्य जल्दी पूरा हो जाए।

इसी के साथ वन्दे भारती...




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