Tuesday 8 March 2016

एक गुजारिश है, आधुनिकता अपनाएं लेकिन नग्नता नहीं

सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के बाद सृष्टि सृजन में यदि किसी का सर्वाधिक योगदान है तो वह नारी का है। यह हमारा दुर्भाग्य है कि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’ की संस्कृति में विश्वास रखने वाला देश आज अपनी ही परंपराओं से मुंह चुराता हुआ दिख रहा है। आधुनिकता की दौड़ में हम इतने आगे निकल गए कि समाज में व्याप्त कुरीतियों को ही शाश्वत सत्य मान बैठे। इसमें मूल गलती उन वामपंथियों की है जिन्हें भारतीय संस्कृति और संस्कारों का विरोध करके आधुनिकता के नाम पर नग्नता को अपनाने में ज्यादा आनंद आता है। बिना मनुस्मृति को पढ़े उसका विरोध करने वाले लोगों की नकारात्मक सोच ही आज हमें इस स्थिति में ले आई है। ऐसा नहीं है कि मैंने सभी भारतीय संस्कृति के आधारभूत ग्रंथों का पूर्ण अध्ययन कर लिया है लेकिन थोड़ा बहुत अध्ययन निरंतर चलता रहता है।

शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत्कुलम्।
न शोचन्ति नु यत्रता वर्धते तद्धि सर्वदा।। (मनु स्मृति 3-57)


मनुस्मृति की इस सूक्ति का अर्थ है कि जिस कुल में बहू-बेटियां क्लेश भोगती हैं वह कुल शीघ्र नष्ट हो जाता है। किन्तु जहां उन्हें किसी तरह का दुःख नहीं होता वह कुल सर्वदा बढ़ता ही रहता है।

नारी के प्रति ऐसा सम्मान रखने वाली संस्कृति की वर्तमान स्थिति कुछ ऐसी हो गई है कि इस देश का प्रगतिशील और आधुनिक नागरिक फुटपाथ पर पड़ी नग्न भिखारिन का तन ढकने के लिए तो एक कपड़े का टुकड़ा तक नहीं दे सकता पर किसी बिस्तर पर स्त्री को निर्वस्त्र करने के लिए हजारों रुपए लुटा देता है। मैं हमेशा से कहता आया हूं कि किसी भी व्यक्ति, विचार अथवा ग्रंथ की अंधानुभक्ति उचित नहीं, लेकिन यदि कहीं कुछ अच्छा है तो उसे स्वीकार करने में क्या समस्या है? जो बुरा है उसे अस्वीकार करिए और जो अच्छा है उसे तो स्वीकार करिए। मैं मानता हूं कि आज इस देश में बहुत से स्थान ऐसे हैं जहां पर स्त्रियों को पुरुषों के समतुल्य नहीं माना जाता, बहुत से स्थान ऐसे हैं जहां स्त्रियों को शिक्षा नहीं लेने दी जाती, बहुत से स्थान ऐसे हैं जहां स्त्रियों को जींस पहनने तक से रोका जाता है लेकिन यह इस देश की संस्कृति का मूल चरित्र नहीं है और ना ही इन सबसे छुटकारा पाने का वैकल्पिक रास्ता यह है कि आप पाश्चात्य सभ्यता का अंधानुकरण करते हुए स्त्रियों की स्वतंत्रता के नाम पर नग्नता के हिमायती बन जाएं। हमारे वामपंथी मित्र इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं होते कि इस संस्कृति में महिलाओं को कभी बराबरी का स्थान दिया गया।

आज अपने इस लेख के माध्यम से मैं उन तथाकथित आधुनिकतावादी शक्तियों को प्रमाण के साथ यह बताऊंगा कि इस संस्कृति में महिलाओं को पुरुषों के समतुल्य नहीं अपितु पुरुषों से ऊपर माना गया है।

सर्वप्रथम बात करते हैं स्त्री शिक्षा की। पाश्चात्य संस्कृति से आयातित फर्जी आधुनिकतावादी शक्तियों का तर्क रहता है कि इस देश में स्त्रियों को शिक्षा नहीं दी जाती थी जबकि सत्य यह है कि वैदिक काल में स्त्री शिक्षा का पर्याप्त प्रचार था। गार्गी, मैत्रेयी आदि स्त्रियों ने शास्त्रार्थ में पुरुषों को पराजित किया था, इससे स्पष्ट है कि महिलाओं को अध्ययन हेतु उदारतापूर्वक प्रोत्साहित किया जाता था। अध्ययन कार्य में महिलाएं, पुरुषों के समान ही दक्षता प्राप्त करती थीं। काव्य, संगीत, नृत्य तथा अभिनय आदि ललित कलाओं में वे बढ़-चढ़कर ज्ञानार्जन करती थीं।

इतना ही नहीं, महिलाएं अपने पति के साथ युद्ध में भी जाती थीं तथा उनके रथों का संचालन करती थीं। पति के साथ युद्ध में जाने वाली विश्चला, नमुचि की महिला सेना, श्रीराम की मां कैकेयी द्वारा दशरथ के रथ का संचालन करना और अपने बच्चे को अपने शरीर से बांधकर अंग्रेजों से युद्ध करने वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को कैसे नकारा जा सकता है यह मेरी समझ से परे है। इतने उदाहरण होने के बावजूद भी जब कोई कहता है कि इस देश में महिलाओं को कभी अधिकार नहीं प्राप्त थे तो उसकी अज्ञानता पर मुस्कराने के अतरिक्त कोई अन्य विकल्प नहीं दिखाई देता।

वहीं जिस पाश्चात्य संस्कृति को स्त्रियों के लिए वरदान के रूप में प्रदर्शित करने का प्रयास किया जा रहा है उसके बारे में थोड़ा सा जान लेते हैं। पहली बार महिला दिवस अमेरिका में 28 फरवरी 1909 को एक सोशलिस्ट पार्टी के आह्वान पर मनाया गया था। आपको जानकार हैरानी होगी कि इसका प्रमुख उद्देश्य महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलवाना था क्योंकि उस समय अधिकतर देशों में महिलाएं वोट के अधिकार से वंचित थीं। लगभग दो सौ वर्ष पहले जब पश्चिम में औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई तो अधिक उत्पादन हेतु महिलाओं को जबरदस्ती घरों से निकाल कर फैक्ट्रियों में काम पर लगा दिया गया। शिक्षा के अभाव में महिलाएं यह अत्याचार चुपचाप सहने को मजबूर थीं। पुरुषों के समान मेहनत करने के बावजूद उन्हें पुरुषों के मुकाबले आधा वेतन ही दिया जाता था।

आज के दौर में भौतिक रूप से सबसे ताकतवर देश अमेरिका 1776 में आजाद हुआ और आपको जानकर हैरानी होगी कि वहां की महिलाओं को लगभग 150 साल बाद 1920 में मतदान करने का अधिकार मिला। ब्रिटेन की बात करें तो जिस दौर में (1928) उस देश ने महिलाओं को मतदान करने के लायक समझा उससे कई साल पहले रानी दुर्गावती, रानी चेन्नम्मा, रानी लक्ष्मीबाई और बेगम हज़रत महल जैसी वीरांगनाएं जो शौर्य गढ़ रही थीं उसके सामने पूरे यूरोप की तथाकथित आधुनिकता पानी भरती नजर आती है।

ऐसा नहीं था कि यूरोप की महिलाएं मात्र वोटिंग से ही वंचित थीं अपितु यदि वहां की वास्तविक स्थिति के बारे में आप सुनेंगे तो हैरान हो जाएंगे। यूरोप के देशों में महिलाओं को बैंक अकाउंट खोलने का अधिकार नहीं था, वहां की महिलाओं की अदालत में गवाही नहीं मानी जाती थी हालांकि कुछ समय के बाद अदालतों में तीन महिलाओं की गवाही एक पुरुष के बराबर मानी जाने लगी। अब एक बार जरा धरती के दूसरे हिस्से यानी सउदी अरब की बात कर लें। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि सउदी अरब में आज भी पति की इजाजत के बिना महिलाएं बैंक अकाउंट नहीं खुलवा सकतीं और अविवाहित महिलाएं तो अकाउंट खोल ही नहीं सकतीं। इस बारे में उस देश का सांस्कृतिक तर्क है कि अकेली महिला के पास पैसा होगा तो वह गुनाह के रास्ते पर निकल जाएगी। भारत में महिलाएं कहती हैं कि हम लड़कों की तरह किसी भी समय कहीं भी क्यों नहीं जा सकते? लेकिन साउदी में महिला यदि घर से बाहर निकल रही है, तो उसके साथ किसी पुरुष रिश्तेदार का होना अनिवार्य है। अकेले निकलने पर उसे हिरासत में ले लिया जाता है। कट्टरपंथियों और धार्मिक रिवाजों के अनुसार अगर महिला अकेले कहीं जाती है तो उसके बदचलन होने की संभावना रहती है। कुछ समय पहले की ही बात है, सउदी में एक युवती के साथ गैंगरेप हुआ लेकिन वह उस समय अपने पुरुष रिश्तेदार के साथ नहीं थी इसलिए सजा भी उसे ही मिली। उसे रेप करने वालों से ज्यादा कोड़े पड़े। ऐसे सैकड़ों कानून आज भी सउदी अरब के हिस्से में आते हैं।

पश्चिम में महिलाओं की स्थिति का कारण वहां की संस्कृति है। प्लैटो (जिसके बारे में कहा जाता है कि the whole european culture is the footnote of plato) ने महिलाओं को मेज और कुर्सी की तरह निर्जीव वस्तु माना था और हमारी इस भव्य संस्कृति में अर्धनारीश्वर स्वरूप को पूर्ण माना गया है। समानता का भाव ऐसा कि आज भी बहुत से मंदिरों में तब तक घुसने नहीं दिया जाता जब तक कि आपकी पत्नी आपके साथ ना हो।

दोस्तो, हमें अमेरिका या सउदी नहीं बनना, हमें भारत बनना है। यदि हमने एक बार सकारात्मक दृष्टिकोण के साथ सोचा तो विश्वास करिए भारत को पुनः विश्वगुरु के पद पर प्रतिष्ठित होने से कोई नहीं रोक पाएगा। हमारे समाज में जो भी कुरीतियां हैं उन्हें दूर करने के लिए अपना तरीका निकालेंगे। अपनी कुरीतियों को दूर करने के लिए यदि हम दूसरों का अंधानुकरण करेंगे तो तय है कि दिग्भ्रमित होकर फंस जाएंगे। हमें महिलाओं को अपने मन से सम्मान देना होगा। हमें यह समझना होगा कि आखिर इस संस्कृति में क्यों सीता-राम, राधा-कृष्ण, लक्ष्मी-नारायण, गौरी-गणेश कहा जाता है। यदि हमारा समाज पुरुष प्रधान होता तो क्या सीता से पहले श्रीराम का नाम नहीं आता? हममें बुराइयां थी नहीं, आई हैं और यह हमारा दायित्व है कि इन्हें दूर करने के लिए अपने हृदय से स्त्रियों का सम्मान करें। आधुनिकता के नाम पर नग्नता का अनुसरण ना करें। पाश्चात्य तकनीक अपनाएं, संस्कृति नहीं। महिलाओं को अपने बराबर नहीं अपने से ऊपर मानें क्योंकि अगर वे नहीं होंगी तो….

पुरुष भाइयों से निवेदन है कि विश्व महिला दिवस पर किसी लड़की अथवा महिला को तब तक शुभकामनाएं ना दीजिएगा जब तक अपने मन में स्त्रियों के लिए सम्मान तथा श्रृद्धाभाव न जागृत हो जाए। कहीं ऐसा ना हो कि किसी महिला को आप एक ओर तो विश करें लेकिन मन में उसके चरित्र को लेकर शंकाएं हों। महिला दिवस की बधाई और शुभकामनाएं तब दीजिएगा जब आपके मन में अपने बेटे और बेटी में वैचारिक स्तर पर कोई अन्तर ना हो, जब अपनी बहन को भी वे सभी अधिकार देने में सक्षम होना जो आपको मिले हैं, जब अपनी फीमेल कॉलीग को सम्मान की नजरों से देखना सीख जाएं, जब लड़कियों को एक ‘ऑप्शन’ के रूप में लेना बंद कर दीजिएगा। वहीं बहनों से निवेदन है कि आधुनिकता का पैमाना नग्नता को न मानें, स्वतंत्रता का पैमाना अश्लीलता को न मानें और पश्चिम का अंधानुकरण न करें। वैचारिक स्वतंत्रता आपका अधिकार है लेकिन यदि आपने सदाचार, त्याग और संयम वाली इस संस्कृति की भव्यता को नकारा तो इस देश की पूज्या नारी, भोग्या का रूप ले लेगी।

No comments:

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

मैं भी कहता हूं, भारत में असहिष्णुता है

9 फरवरी 2016, याद है क्या हुआ था उस दिन? देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भारत की बर्बादी और अफजल के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने ज...