Monday 14 March 2016

वामपंथियों के नाम एक 'खुला' पत्र

मेरे वामपंथी भाइयों, 

जिस संविधान के अनुच्छेद 19(ए) के तहत आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बात करते हैं. उसी संविधान के अनुच्छेद 51(ए) में 11 मौलिक दायित्व भी दिए हैं। वे निम्न हैं-

प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह-
1. संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करे।
2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे।
3. भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे।
4. देश की रक्षा करे।
5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे।
6. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका निर्माण करे।
7. प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे।
8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे।
9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे।
10. व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे।
11. माता-पिता या संरक्षक द्वारा 6 से 14 वर्ष के बच्चों हेतु प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना (86वां संशोधन)।

अब आप स्वयं तय करिए कि आप इनमें से कितने दायित्वों का पालन करते हैं।
संविधान और संवैधानिक व्यवस्था में आपका यकीन नहीं। आप एकरूपता के पक्षधर हो । क्यों कि अगर आप समानता चाहते तो “संगच्छध्वं संवदध्वं सं वो मनांसि जानताम” - “हम सब एक साथ चलें,
एक साथ बोलें, हमारे मन एक हों।”
का विचार रखने वाली संस्कृति का विरोध ना करते।

इस देश के उच्च आदर्श आपको कल्पना लगते हैं अथवा उनमें बुराइयां दिखने लगती हैं या फिर उनको देखने के लिए आपमें ग्लोबल दृष्टि आ जाती है और आप कहने लगते हैं कि वे 'अंग्रेजों की दृष्टि में तो आतंकवादी ही थे।' आप इसमें अपनी वैश्विकता दिखाकर विदेशियों को महान बनाने लगते हैं। एक तरफ तो आप समानता की बात करते हैं दूसरी ओर दलित राजनीति करते हैं। रही बात प्रभुता, एकता और अखंडता की तो आप खुले तौर देश को खंडित करने की बात करते हो। कभी आप कश्मीर में जनमत संग्रह कराने लगते हो तो कभी भारत की संस्कृति को 'फालतू' बताकर उनका अनुसरण करने लगते हो जिनको बिना सिले कपड़े पहनना नहीं आया। (बिना सिले कपड़े पहनना सबसे आसान है क्योंकि उन्हें पहनने के लिए कपड़े के सिवा किसी कृत्रिम चीज की आवश्यकता नहीं होती, मैं मानता हूं कि कपड़े सिलना भी एक बड़ी कला है लेकिन बिना सिले एक ही कपड़े को कई तरह से पहन लेना भी किसी कला से कम तो नहीं है। )

देश की रक्षा करने वाले सैनिक आपको बलात्कारी लगते हैं। (किसी व्यक्ति विशेष का उदाहरण न दें क्योंकि इस कुतर्क के साथ आप उनके द्वारा किए गए सेवा एवं संघर्ष कार्यों को नकार नहीं सकते।) समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना में आपका विश्वास है नहीं क्योंकि अगर ऐसा होता हो तो आप 'माता भूमिः पुत्रोऽहं पृथिव्याः। यह धरती हमारी माता है, हम सब इसकी सन्तान हैं।' पर तो कम से कम हमारे साथ होते। क्यों कि इससे ज्यादा आप भ्रातृत्व क्या लेंगे कि एक मां के सब बेटे हैं, पूरी धरती मां। कोई सीमा ही नहीं।

इस पंक्ति को लिखने से पहले मां शारदे से क्षमा मांगता हूं। सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझने और उसका निर्माण करने का तो प्रश्न ही नहीं क्यों कि आपको औरंगजेब महान और दुर्गा जी 'वेश्या' लगती हैं। सार्वजनिक संपत्ति को तो अपने बाप का समझकर तुम इसी संविधान के आधार पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम लेकर देश को तोड़ने वाले नारे लगाते हो।
अरे यार क्या लिखूं तुम्हारे बारे में.... बस निवेदन करता हूं कि स्वतंत्रता और स्वच्छंदता के अंतर को समझो और कम से कम इन दायित्वों का तो निर्वहन करो।

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