कैसा जीवन है बिन तेरे, कैसे तुमको समझाऊं
नहीं रहा अब प्रेम पुराना, कैसे मन को बतलाऊं।
जीवन की उस नरम डोर को जब से तुमने छोड़ा है
हर पागल दीवाने ने मुझसे, खुद को जोड़ा है
प्रेम राग था बड़ा कठिन पर मैंने उसको गाया था
उसी दौर में एक स्वप्न तब मेरी नींद में आया था।
कैसा था अहसान तुम्हारा, मेरे दिल की हसरत पर
हर आहट दस्तक देती थी, मेरे मन की चौखट पर
मिला था जब भी साथ तुम्हारा, खुद से पार गया था मैं
नहीं मिला जब प्रेम तुम्हारा, खुद से हार गया था मैं
नहीं रुका करता है जीवन, किसी के आने जाने से
प्रेम पल्लवित होता है बस, अपने मन को भाने से
यही दिलासा दी थी तुमने, जब मैं मिलने आया था
'नहीं तुम्हारी जगह कोई अब' कहकर हाथ छुड़ाया था
कैसे तुमको बतलाता कि जीवन का आधार तुम्हीं थी
कैसे तुमको समझाता कि मेरा तो विश्वास तुम्हीं थी
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