Friday 8 April 2016

गौरवशाली अतीत और समृद्धि की प्रतीक है वर्ष प्रतिपदा

भारतीय कालगणना के अनुसार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि अर्थात प्रतिपदा से नव संवत्सर का आरम्भ होता है। इस तिथि को वर्ष-प्रतिपदा कहते हैं। भारतवर्ष में युधिष्ठिर संवत्, विक्रम संवत्, शालिवाहन शक संवत् आदि का आरम्भ वर्ष-प्रतिपदा से ही होता है। शासकीय दृष्टि से शक संवत् को मान्यता प्राप्त है, परन्तु जनजीवन में विक्रम संवत् को ही प्रमुखता दी गई है। वर्ष-प्रतिपदा का राष्ट्रीय विजय की स्फूर्तिप्रद स्मृति से भी सम्बन्ध है। श्रीरामचन्द्र का राज्याभिषेक वर्ष-प्रतिपदा के दिन ही हुआ था। इस दिन घर-घर पर ध्वज-पताकाएं लगाई जाती हैं जो हमारे पूर्वजों के शौर्य का स्मरण दिलाती है। ऋतुओं के पूरे एक चक्र को संवत्सर कहते हैं अर्थात किसी ऋतु से आरम्भ करके ठीक उसी ऋतु के पुनः आने तक जितना समय लगता है उसे संवत्सर कहते हैं।
चैत्रे मासि जगद् ब्रह्मा ससर्ज प्रथमेऽहनि ।
शुक्लपक्षे समग्रं तु तदा सूर्योदये सति ।।
ब्रह्म पुराण में वर्णित इस श्लोक के अनुसार चैत्र मास के प्रथम सूर्योदय के साथ ही ब्रह्म जी ने सृष्टि की रचना की थी।
वसन्त ऋतु के आरम्भ से संवत्सरारम्भ माना जाता है, यह पूर्ण वैज्ञानिक है। वसन्त ऋतु नवीन पत्र-पुष्पों द्वारा प्रकृति के नवश्रृंगार का आरम्भ-समय है। प्रत्येक वृक्ष-लता आदि इस ऋतु में अपने जीर्ण-शीर्ण पत्तों को त्यागकर पुनः नवीनता प्राप्त करते हैं। इसके साथ-साथ इस तिथि पर सूर्य भी अपने राशि-चक्र की प्रथम राशि ‘मेष’ में इसी ऋतु में आता है। दैनिक जीवन में सूर्य का महत्त्वपूर्ण स्थान है। इस तिथि को संवत्सरारम्भ सूर्य के प्रति आस्था का भी प्रतीक माना गया है।
इस तिथि के कई ऐतिहासिक महत्व भी है। इसी तिथि को सम्राट विक्रमादित्य ने 2072 साल पहले अपना राज्य स्थापित कर विक्रम संवत की शुरुआत की। इसी दिन लंका में राक्षसों का संहार कर अयोध्या लौटे मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का राज्याभिषेक किया गया था। इसी तिथि से शक्ति और भक्ति के प्रतीक, नौ दिन अर्थात नवरात्र का प्रारंभ होता है।
इसी दिन शालिवाहन संवत्सर भी प्रारंभ होता है। इसी दिन विक्रमादित्य की भांति शालिवाहन ने हूणों को परास्त कर दक्षिण भारत में श्रेष्ठतम राज्य स्थापित किया था। समाज से आडंबरों का विनाश करने के लिए स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी दिन आर्य समाज की स्थापना की थी। इसी दिन सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगददेव का जन्म दिवस भी होता है। इस विशेष तिथि को ही सिंध प्रांत के प्रसिद्घ समाज रक्षक वरुणावतार संत झूलेलाल प्रकट हुए थे। इस वर्ष से 5118 वर्ष पूर्व युधिष्ठिर का राज्याभिषेक हुआ तथा युगाब्द संवत्सर का प्रथम दिन भी इसी तिथि को होता है। इतना ही नहीं इस देश की एकता, अखंडता एवं एकात्मता के संरक्षण के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना करना वाले डॉ. केशव राव बलीराम हेडगेवार का जन्म भी इसी दिन हुआ था।
इन ऐतिहासिक महत्वों के साथ साथ वर्ष प्रतिपदा प्राकृतिक रूप से भी काफी समृद्ध है। वसंत ऋतु का प्रारंभ वर्ष प्रतिपदा से ही होता है। यह ऋतु उल्लास, उमंग, खुशी तथा पुष्पों की सुगंध से परिपूर्ण होती है। यही वह समय होता है जब किसान की मेहनत का फल मिलने वाला होता है अर्थात इस समय फसल पकना शुरू होती है। यह वह समय होता है जब नक्षत्र शुभ स्थिति में होते है अर्थात किसी भी कार्य को प्रारंभ करने के लिए यह सबसे शुभ मुहूर्त होता है।
मैं यह नहीं कहता कि प्रत्येक भारतीय को मात्र वर्ष प्रतिपदा के अवसर पर ही खुशियां मनानी चाहिए। इस देश की संस्कृति का मजबूत स्तंभ, यहां की उत्सवधर्मिता है। सभी को स्वीकार करिए लेकिन स्वयं को भूलकर नहीं। भारत में तो प्रत्येक समुदाय का एक विशेष नववर्ष होता है, उनको भी मनाइए और साथ ही अंग्रेजी नववर्ष भी मनाइए। हम जब भारत में माने जाने वाले अधिकतर त्योहारों पर भारतीय कालगणना के हिसाब से अवकाश लेते हैं तो उस कालगणना पर आधारित नववर्ष की शुभकामनाएं देने से कतराते क्यों हैं? तो आइए, नए संवत्सर पर हम अपने महापुरुषों से प्रेरणा लें और कामना करें कि नूतन संवत्सर 2073 हमारे देश के लिए सुख-समृद्धिकारक और मंगलदायक हो।

No comments:

इसे नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा

मैं भी कहता हूं, भारत में असहिष्णुता है

9 फरवरी 2016, याद है क्या हुआ था उस दिन? देश के एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में भारत की बर्बादी और अफजल के अरमानों को मंजिल तक पहुंचाने ज...