Monday 27 June 2016

गलत प्रस्तुति की वजह से 33 करोड़ हुए '33 कोटि' देवता

आज अगर देश की सबसे बड़ी समस्या को समझने की कोशिश करें तो साफ तौर वह धार्मिक अज्ञानता है। इस धार्मिक अज्ञानता के कारण वे लोग हैं जो कालांतर में विभिन्न धर्म की एकछत्र ठेकेदारी करते रहे। इसी धार्मिक अज्ञानता के कारण चंद लोगों ने जिहाद जैसे सकारात्मक शब्द को नकारात्मकता की पराकाष्ठा तक पहुंचा दिया तो वहीं दूसरी ओर उसी श्रेणी के कुछ लोगों ने सनातन को उसकी मूल अवधारणा से विरक्त कर दिया। जिन उद्देश्यों के साथ विभिन्न धार्मिक ग्रंथों की रचना की गई थी, वे उद्देश्य अज्ञानता और अकर्मण्यता की भेंट चढ़ गए। अपने-अपने तरीके से धर्म के ठेकेदारों ने उन विषयों को समाज के सामने रखा जो समाज को सकारात्मक दिशा देने के लिए हमारे पूर्वजों ने गहन शोध और चिंतन के बाद प्रतिस्थापित किए थे। अर्थ का अनर्थ करने के कारण ही आज स्थिति यह हो गई है कि समाज में एक वर्ग ऐसा तैयार हो गया है जो धर्म को ‘अफीम’ बताने लगा है। हम उस वर्ग से तार्किक संवाद नहीं कर पाते क्योंकि हमारे समक्ष हमारे ही धर्म (रिलिजन) को जिस रूप में प्रदर्शित किया गया है, वह रूप कई बुराइयों से या यूं कहें कि गलतफहमियों से भरा हुआ है। इसी तरह के लोगों में से कोई मुल्ला यह कहता है कि इस्लाम में कद्दू की तौहीन करना बहुत बड़ा गुनाह है और उसकी सजा कत्ल है, (पढ़ें: कद्दू न खाने पर क़त्ल का फ़रमान, भला यह कैसा इस्लाम?) तो दूसरी ओर कोई स्वरूपानंद सरस्वती यह कहने लगता है कि महिलाओं द्वारा शनिदेव की पूजा करने से रेप जैसी घटनाएं बढ़ जाएंगी।
आज सनातन धर्म (जिसे वर्तमान समय में हिंदू धर्म के नाम से जाना जाता है) की एक ऐसी ही गलत रूप से प्रस्तुत अवधारणा के विषय पर बात करने के लिए इस ब्लॉग को लिख रहा हूं। समाज में कहा जाता है कि सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता हैं। सबसे पहले तो इस बात के पीछे का कारण समझने की कोशिश करते हैं। थोड़ी देर के लिए मान लेते हैं कि सनातन धर्म में 33 करोड़ देवी-देवताओं की गणना की गई होगी। लेकिन यहां तो हर रोज एक नए देवता का मंदिर बन जाता है, ऐसे में यह संख्या स्थायी क्यों है? यह मेरी समझ से परे है। कुछ विद्वानों का मत है कि जब यह परिकल्पना दी गई होगी उस समय दुनिया की जनसंख्या 33 करोड़ रही होगी। अत: सभी को देवी-देवता मान लिया गया। यदि इस तर्क को माना जाए तो आज विश्व की जनसंख्या 7 अरब 50 करोड़ के करीब है। ऐसे में आज तो यह कहना चाहिए कि कुल मिलाकर अब 7.5 अरब देवी-देवता हैं। बात यहीं पर खत्म नहीं होती। इसमें भी एक पेंच है। पेंच यह है कि सनातन परंपरा तो प्रत्येक जीव और प्रत्येक कण-कण में ईश्वर का वास मानती है तो फिर उनकी गणना क्यों नहीं की जाती?
चलिए, अब समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर यह 33 करोड़ वाला ‘खेल’ क्या है? सत्य यह है कि किसी भी सनातन ग्रंथ में 33 करोड़ देवताओं का जिक्र नहीं हुआ है। ग्रंथों में ’33 कोटि’ शब्द का प्रयोग हुआ है। करोड़ के साथ-साथ कोटि का एक अर्थ ‘प्रकार’ भी होता है। इसे यदि आसान शब्दों में श्रेणी या कैटिगरी कहें तो गलत न होगा। कुछ तथाकथित बुद्धिजीवियों ने इसी ‘कोटि’ को करोड़ बना दिया। शतपथ ब्राह्मण नामक ग्रंथ में देवताओं की कुल संख्या 33 बताई गई है। यह संख्या यूं ही नहीं बताई गई है बल्कि संख्या के साथ इस देवताओं के विषय में भी बताया गया है। आगे बढ़ने से पहले यह समझ लेते हैं कि देवता आखिर माना किसे गया है? निरुक्त (7-15) में कहा गया है: देवो दानाद्वा, दीपनाद्वा घोतनाद्वा, घुस्थानो भवतीति व।। अर्थात अर्थात दान देने से देव नाम पड़ता है और दान कहते है अपनी चीज दूसरे के अर्थ दे देना। दीपन कहते है प्रकाश करने को, धोतन कहते है सत्योपदेश को। यानी जो अपनी कोई भी चीज दान करता है सामान्य अर्थों में वह देवता कहलाता है।
शतपथ ब्राह्मण (11.6.3.5) में जिन 33 देवताओं की चर्चा की गई है उनमें 8 वसु हैं, 11 रुद्र है, 12 आदित्य तथा इन्द्र और प्रजापति शामिल हैं। उनमें से 8 वसु देवों में अग्नि , पृथ्वी, वायु, अन्तरिक्ष, आदित्य, घौ:, चन्द्रमा और नक्षत्र शामिल हैं। इनके नाम वसु इसलिये है कि सब पदार्थ इन्ही में वास करते है और ये ही सबके निवास करने के स्थान हैं। इनमें 11 रूद्र देवों में प्राण, अपान, व्यान, समान, उदान, नाग, कुर्म, कृकल, देवदत्त, धनज्जय और अंतिम जीवात्मा शामिल हैं। ये देव (तत्व) जब इस शरीर से निकल जाते हैं तब मरण होने से सभी सम्बन्धी रोते हैं। वे निकलते हुए अन्य लोगों को रुलाते हैं , इस कारण इनका नाम रूद्र है।
इसी प्रकार आदित्य 12 महीनों को कहते है, क्योंकि वे सब जगत के पदार्थों का आदान अर्थात सबकी आयु को ग्रहण करते चले जाते है, इसी से इनका नाम आदित्य है। ऐसे ही इंद्र नाम बिजली का है, क्योंकि वह उत्तम ऐश्वर्य की विधा का मुख्य हेतु है और यज्ञ को प्रजापति इसलिए कहते है  क्योंकि उससे वायु और वृष्टिजल की शुद्धि द्वारा प्रजा का पालन होता है। ये सब मिलकर अपने दिव्यगुणों से त्रिदेव कहलाते हैं। इनमें से किसी को भी उपासना के योग्य नहीं माना गया है, किन्तु व्यवहार मात्र की सिद्धि के लिए ये सभी देव माने गए हैं। इसी संकल्पना से संपूर्ण जगत को बनाने वाले ब्रह्मा, सर्वत्र व्यापक होने वाले विष्णु और दुष्टों को दण्ड दे कर रुलाने वाले रूद्र कहे गए हैं।

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