Friday 26 August 2016

गोरक्षको, दलित तुमसे ज्यादा धर्मनिष्ठ हैं

गोरक्षा की बात हो, गोरक्षा दल बनें…कोई समस्या नहीं। हमें जन्म देकर अपने दूध से हमारी हड्डियों को मजबूती प्रदान करने वाली मां की तरह गाय भी हमारी जीवनदायनी है। लेकिन इस समय भारत में दलितों के साथ जो हो रहा है, उससे उनकी रक्षा के लिए क्या कोई दल नहीं बनना चाहिए? क्या दलितों की रक्षा की जिम्मेदारी हमारी नहीं है? क्या वे हमारे भारत का हिस्सा नहीं हैं? क्या भारत बनाने में उनका कोई योगदान नहीं है? अरे साहब! याद करिए वह मुगलकालीन दौर जब अपने धर्म की रक्षा के लिए इन्होंने अपने जनेऊ को तोड़कर अर्थात ‘भंग’ कर मुगल शासकों के यहां मैला ढोने और उनके द्वारा पात्र में किए गए शौच को सिर पर उठाकर फेंकने का काम तक शुरू कर दिया। याद करिए वह दौर जब हमारी ही अग्रज पीढ़ियां तीन भागों में बंट गईं थीं। एक तो वे जिन्होंने मुगलों के आगे झुककर इस्लाम स्वीकार कर लिया, दूसरे वे जिन्होंने संघर्ष किया या खुद को छिपाते रहे और तीसरे वे जिन्होंने धर्म को नहीं छोड़ा और मुगलों की दृष्टि में जो सबसे गंदा काम था, उसे करना स्वीकार किया।

आज आप उन्हें उनकी शादी में घोड़ी पर नहीं बैठने देते हैं। अरे हिम्मत नहीं है आपकी कि आप उनसे आंख मिलाकर बात कर सकें। आपको तो उनके चरणों को धोकर पीना चाहिए कि जो काम आज आप अपने घर में भी नहीं कर पाते हैं, उस काम को वे बड़ी निष्ठा से करते हैं। एक जानवर के मर जाने पर जब आप अपनी नाक पर कपड़ा रखकर उसके पास से निकलते हैं तो वे हीं हैं जो आपकी सुविधा के लिए खुद को कष्ट देकर उस जानवर को हटाते हैं। हो सकता है कि आप अब कुतर्क करें कि वे अपना काम करते हैं। साहब! यह उनका काम नहीं है बल्कि आपके लिए आईना है कि जो आप नहीं कर सकते वह वे कर सकते हैं। आपको तो शर्म से डूब मरना चाहिए लेकिन आप तो उन्हें पीटेंगे, उन्हें कुएं से पानी नहीं भरने देंगे, उनको मंदिर में नहीं घुसने देंगे। क्या आपके भगवान कहते हैं कि जो मैला उठाएगा या जो उस परिवार में जन्म लेगा, वह उनके मंदिर में नहीं जा सकता? क्या आपके भगवान छुआछूत मानते हैं? क्या वह तुमसे कहते हैं कि छुआछूत मानो और दलितों पर अत्याचार करो? अगर हां, तो एक समय में लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने कहा था और आज मैं कहता हूं कि अगर आपका भगवान छुआछूत मानता है तो मैं उसे भगवान नहीं मानता।

याद करिए चंवरवंश का गौरवशाली इतिहास और चंवरवंश से संबंध रखने वाले संत रविदास को, जिन्हें राणा सांगा और उनकी पत्नी झाली रानी ने अपना गुरु बनाकर उनको मेवाड़ के राजगुरु की उपाधि दी थी। जिन्हें आपके पूर्वजों ने गुरु माना, आप उनके वंशजों को अछूत मानते हैं। क्या आपने एक संत का वह शौर्य नहीं पढ़ा कि जब सिकंदर लोधी ने रविदास को कैद करके उनके अनुयायियों को ‘चमार’ कहकर अछूत घोषित किया और उन पर इस्लाम स्वीकार करने का दबाव डाला तो उन्होंने कहा,

वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान,
फिर मैं क्यों छोड़ू इसे, पढ़ लूं झूठ कुरान।
वेद धर्म छोड़ू नहीं, कोसिस करो हज़ार,
तिल-तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार।। (रविदास रामायण)

माफ कीजिएगा लेकिन जो काम सिकंदर लोधी ने किया था, वही काम आप भी कर रहे हैं। हमारे-आपके तथाकथित सनातनी पुरखों ने उन्हें अछूत बनाकर सनातन धर्म के सीने में कटार घोंपने जैसा काम किया। इससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह है कि आज 21वीं सदी में जब भारत के हर नागरिक को एक सूत्र में पिरोने की आवश्यकता है तो आप अपने पूर्वजों की उसी कुत्सित परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं।  हमारे-आपके पूर्वजों ने इन धर्मरक्षकों को अपने ही समाज से बहिष्‍कृत कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि हिंदू धर्म कुरीतियों का घर बन गया, जो आज जातिप्रथा के रूप में एक अभिशाप बनकर अपनी जड़ें जमा चुका है।

मछुआरी मां सत्‍यवती की संतान महर्षि व्‍यास की तो आप पूजा करते हैं और आज एक मछुआरे को निम्न स्तर का कहकर उसे अपने साथ खाना भी नहीं खिलाते। हो सकता है आपको बुरा लगे लेकिन मैं इसे दोगला चरित्र ही मानता हूं। आप श्रीकृष्ण की बात करते हैं ना तो गीता के चौथे अध्‍याय का 13वां श्‍लोक भी पढ़ लीजिए, जिसमें श्रीकृष्‍ण ने कहा है, ‘चातुर्वर्ण्य मया सृष्टां गुणकर्मविभागशः’ (महाभारत आदि पर्व 64/8/24-34) अर्थात चारों वर्ण ‘मैंने’ ही बनाए हैं, जो गुण और कर्म के आधार पर है। यह पढ़ने के बावजूद अगर आपके मन में यह प्रश्न न उठे कि जब सभी का निर्माता एक ही है तो मन में दलित, अस्‍पृश्‍य जाति जैसी भावना कैसे आ गई?

याद रखिए, हमारे आराध्य श्रीराम ने भी कभी किसी को स्वयं से अलग नहीं समझा। उन्होंने निषादराज को भी गले लगाया साथ ही शबरी के जूठे बेर भी खाए। आज इन तथाकथित दलितों को खुद से दूर करके आप श्रीराम का अपमान कर रहे हैं। बस इतना ही निवेदन है कि भारत की सांस्कृतिक एकता को मत तोड़िए। गोरक्षा के नाम पर, अपनी झूठी परंपराओं के नाम पर इन्हें खुद से दूर मत करो। याद रखिए, भारत सिर्फ आपसे नहीं बनता। भारत बनाने में हमारे इन भाइयों का भी योगदान है। आज जिस गौरवशाली और शौर्यपूर्ण अतीत की बात करके आप खुद को श्रेष्ठ जताने की कोशिश करते हो, उस अतीत की नींव इनके समर्पण पर ही टिकी है।

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