आम आदमी पार्टी,
राजनीति की ‘दशा और दिशा’ सुधारने के दावे के साथ सत्ता के सिंहासन तक
पहुंची एक नई पार्टी… उस पार्टी की सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री
रहे संदीप कुमार की ‘सेक्स सीडी’ लीक हो जाती है तो भारत के राजनीतिक
गलियारों में अजीब सा माहौल बन जाता है… पार्टी अपनी जिम्मेदारी को समझती
है और तत्काल कार्रवाई करते हुए आधे घंटे के अंदर आरोपी नेता को पदमुक्त कर
देती है। लेकिन सोशल मीडिया पर आम आदमी पार्टी और उसके नेताओं की बखिया
उधेड़ दी जाती है। इन सबके बीच मेरा एक सीधा सा सवाल है कि क्या किसी के
व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप करना उचित है? मैं मानता हूं कि संदीप ने जो
किया वह ठीक नहीं था। किसी महिला के साथ आपत्तिजनक अवस्था में तस्वीरें
खींचना – जैसा कि आरोप है – अनैतिक भी है और असंवैधानिक भी लेकिन इसमें उस
महिला की क्या गलती है?
सोशल
मीडिया के धुरंधर संदीप कुमार के साथ उस महिला की तस्वीरें भी पोस्ट कर
रहे हैं।ज़्यादा चिंता की बात यह है कि जो लोग सोशल मीडिया पर उस लड़की की
आपत्तिजनक तस्वीरें पोस्ट कर रहे हैं उनका दावा है कि वे उस परिवार से आते
हैं जो नारी को ‘देवी’ मानता है। अपनी ‘देवी’ को बदनाम करना कैसी ‘पूजा’
है यह मेरी समझ से परे है। संदीप एक जनप्रतिनिधि था तो क्या वह अपना
व्यक्तिगत जीवन छोड़ दे? बिल्कुल नहीं, लेकिन यह उस जनप्रतिनिधि को पता
होना चाहिए कि लोगों ने एक विशेष चरित्र की आड़ में उसे चुन लिया, अब उस
व्यक्ति की जिम्मेदारी है कि वह जनता के सामने एक आदर्श स्थिति प्रस्तुत
करे। लेकिन अगर वह जनप्रतिनिधि ऐसा नहीं भी करना चाहता है तो क्या समस्या
है? भारत में बड़े-बड़े नेताओं की बड़ी-बड़ी करतूतें तो झेल ही रहे हैं ना
हम।
हमने जीप घोटाले से लेकर ताज कॉरिडोर से
होते हुए 2जी और CWG तक झेला ना, तो फिर इस बात को क्यों नहीं झेल सकते? हम
एक ऐसे नेता को झेल सकते हैं जो कहती हो कि भारत में जो उनकी पार्टी को
वोट देगा वह रामजादा है और बाकी विपक्षी हरामजादे हैं, हम एक ऐसा नेता झेल
सकते हैं जो बच्चों को शिक्षित करने की सलाह देने के बजाय चार बच्चे पैदा
करने की सलाह देता हो, हम एक ऐसा नेता झेल सकते हैं जो बलात्कार करने वालों
को ‘बच्चा’ करार देते हुए इस कुकर्म को गलती बताता हो, हम एक ऐसा नेता झेल
सकते हैं जो एक महिला सांसद को ‘सौ टका टंच माल’ कहता है, हम एक ऐसा नेता
को झेल सकते हैं जो देश के प्रधानमंत्री पद के प्रबल उम्मीदवार को अपने
क्षेत्र में आने पर बोटी-बोटी करने की धमकी देता है। जब हम इतना कुछ झेल
सकते हैं तो फिर अपने व्यक्तिगत जीवन में किसी ‘गैर’ महिला के साथ सेक्स
करने वाले को क्यों नहीं झेल सकते? ‘सेक्स-संबंधों’ पर आगे की बात करने से
पहले जरा एक बार भारतीय राजनीति के ऐसे ही कुछ अन्य नेताओं के बारे में भी
जान लेते हैं। खास बात यह है कि ऐसे लोग देश की दो सबसे बड़ी पार्टियों में
भी हैं।
मध्य प्रदेश बीजेपी के नेता और वित्त
मंत्री रहे राघव जी की 2013 में आई, वह सीडी भी याद कर लीजिए जिसमें 79
वर्षीय राघव जी अपने नौकर के साथ आपत्तिजनक अवस्था में पाए गए थे। 2009 में
आई कांग्रेस नेता नारायण दत्त तिवारी की वह सीडी याद करिए जिसमें वह तीन
महिलाओं के साथ आपत्तिजनक हालत में दिखाई दे रहे थे। इसी पार्टी के
राजस्थान के महिपाल मदेरणा और नर्स भंवरी देवी का सेक्स सीडी स्कैंडल याद
है ना? उस समय महिपाल भी गहलोत सरकार में कैबिनेट मंत्री थे।
इनके अलावा भी अन्य कई नेता हैं जिन पर
महिलाओं ने रेप के आरोप तक लगाए हैं परंतु उस पर बात नहीं होगी। बात होगी
संदीप कुमार के केस की, जिसमें कोई पीड़िता नहीं है और जिसमें किसी ने आकर
शोषण की शिकायत तक दर्ज नहीं कराई है, उस पर पूरा सोशल मीडिया इस तरह से
कटाक्ष कर रहा है जैसे सहमति से ‘सेक्स’ करना भी अपराध हो।
विरोध का स्तर भी इतना गिरा लिया कि अपने पूर्वज तक याद नहीं रहे। यह भी
छोड़िए, कुछ तो ऐसे हैं जो अपने को सही साबित करने के लिए गांधी, नेहरू और
अटल तक को बीच में ले आए। अटल जी ने कहा था कि मैं कुंवारा हूं लेकिन
ब्रह्मचारी नहीं। यहां उन्होंने ब्रह्मचारी शब्द का प्रयोग किन अर्थों में
किया था, यह एक अलग विषय है लेकिन भविष्य में उनके इस वाक्य को किस सीमा तक
ले जाया जाएगा, यह जानते हुए भी इस वाक्य को बोलने की हिम्मत रखना मामूली
बात नहीं थी। ‘सत्य के प्रयोग’ लिखने वाले मोहनदास करमचंद गांधी जी के
व्यक्तिगत जीवन में उनकी सोच क्या रही होगी, वह एक अलग विषय है लेकिन उसे
लिखने की क्षमता रखना सामान्य श्रेणी में तो नहीं आता।
पार्टी प्रवक्ता की ओर से उदाहरण तो इन
लोगों का दिया जा रहा है लेकिन आरोपी अपनी बात स्पष्ट रूप से कहने के बजाय
‘दलित कार्ड’ फेंक रहा है। कैसी राजनीति है! एक महिला के लिए जिस तरह की
भाषा का प्रयोग किया जा रहा है, वह पूर्णरूप से संस्कारविहीन दिखती है। ऐसे
लोग जो सोशल मीडिया पर एक लड़की के चरित्र का प्रमाणपत्र बांट रहे हैं, वे
कम से कम एक बार अपनी व्यक्तिगत जीवन के विषय में भी सोचें। मेरा मानना है
कि सवाल इस बात पर नहीं उठना चाहिए कि एक ‘जनप्रतिनिधि’ के किसी गैर महिला
के साथ संबन्ध थे बल्कि सवाल इस बात पर उठना चाहिए कि संदीप कुमार ने आखिर
तस्वीरें क्यों खींची और विडियो क्यों बनाया? सवाल इस बात पर उठना चाहिए
कि किसी महिला के सम्मान को लेकर एक व्यक्ति इस हद तक गैरजिम्मेदार कैसे हो
सकता है? सवाल इस बात पर उठना चाहिए कि सोशल मीडिया पर एक लड़की के सम्मान
से खुलेआम खिलवाड़ करने वालों पर कार्रवाई कब होगी?
विश्वास मानिए, यदि विरोध भी सकारात्मकता की नींव पर टिका होगा तो निश्चित ही देश की राजनीति में परिवर्तन देखने को मिलेगा।
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