Thursday 25 August 2016

वीर सावरकर की प्रेरणा से सुभाष चन्द्र बोस ने बनाई थी आजाद हिंद फौज

वैसे तो अभी तक भारत के वीर सपूत नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की मौत पर रहस्यात्मक प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है लेकिन एक प्रचलित 'तथ्य' यह भी है कि आज से ठीक 71 साल पहले 18 अगस्त 1945 को तोक्यो जाते हुए उनका हवाई जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और इस हादसे में नेताजी की मौत हो गई थी। नेताजी की मौत से जुड़ा सच क्या है, यह एक अलग विषय है लेकिन देश के प्रति पूर्ण मनोयोग के समर्पित होकर ब्रिटिश सेना के सामने एक भारतीय सेना खड़ी करने वाले सुभाष बाबू के जीवन के जुड़े कुछ ऐसे अध्याय हैं जिनके बारे में शायद आपको जानकारी न हो। विश्व इतिहास में आजाद हिंद फौज जैसा कोई दूसरा उदाहरण नहीं मिलता जहां 1,50,000 हजार युद्ध बंदियों को संगठित, प्रशिक्षित कर अंग्रेजों के सामने खड़ा किया गया हो।

सन् 1938 में सुभाष चन्द्र बोस, कांग्रेस के अध्यक्ष बने लेकिन अपने कार्यकाल के दौरान गांधी जी तथा उनके सहयोगियों के व्यवहार से दुखी होकर सुभाष चन्द्र बोस ने 29 अप्रैल 1939 को कांग्रेस अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया। इसके बाद 3 मई 1939 को उन्होंने कोलकाता में फॉरवर्ड ब्लॉक अर्थात अग्रगामी दल की स्थापना की तथा भारत की स्वतंत्रता और अखंडता के लिए वह तत्कालीन नेताओं एवं क्रांतिकारियों से संपर्क करने लगे।

आपको जानकर हैरानी होगी कि सुभाष बाबू को अंग्रेजों के सामने एक भारतीय सेना खड़ी करने की प्रेरणा विनायक दामोदर सावरकर से मिली थी। 26 जून 1940 को सुभाष चन्द्र बोस, सावरकर के घर गए। वह सावरकर से मिलने मोहम्मद अली जिन्ना के कहने पर गए थे क्योंकि जिन्ना, सावरकर को हिंदुओं का नेता मानता था और खुद को मुस्लिमों का नेता कहता था। मुस्लिम लीग द्वारा मुसलमानों के लिए जब अलग देश की मांग की गई तो सुभाष बाबू जिन्ना के पास गए। सुभाष बाबू चाहते थे कि मुस्लिम लीग देश के विभाजन की मांग न करे। जिन्ना के पास पहुंचने पर जिन्ना ने सुभाष बाबू से पूछा कि वह किसकी तरह से उससे बात करने आए हैं? इस पर सुभाष बाबू ने कहा कि वह ने कहा कि वह फॉरवर्ड ब्लॉक के नेता के तौर पर बात करना चाहते हैं। सुभाष बाबू की इस बात पर जिन्ना ने कहा, 'मैं मुसलमानों का नेता हूं और मुझसे कोई हिंदू नेता ही बात कर सकता है।' जिन्ना की नजर में विनायक दामोदर सावरकर हिन्दुओं के नेता थे। जब सुभाष बाबू, विनायक दामोदर सावरकर से मिलने पहुंचे तो सावरकर ने सुभाष बाबू को महान क्रांतिकारी रायबिहारी बोस के साथ हुए पत्रव्यवहार के बारे में बताया। सावरकर ने उनको बताया कि रायबिहारी बोस, युद्धबंदी भारतीयों को एकत्रित करके एक सेना बनाने का प्लान कर रहे हैं। इसके बाद नेता जी जर्मनी गए। जर्मनी में उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संगठन और आजाद हिंद रेडियो की स्थापना की।

जर्मनी में सुभाष बाबू ने हिटलर से मुलाकात की। नेताजी भारत को आजाद करवाने के लिए दुनिया भर की मदद चाहते थे। हिटलर ने एक सीमा तक नेताजी की मदद भी की। वह सुभाष बाबू से बहुत प्रभावित हुआ। महान देशभक्त रासबिहारी बोस के मार्गदर्शन में नेता जी ने 21 अक्टूबर 1943 को सिंगापुर के वैफथे नामक हॉल में आर्जी-हुकूमते-आज़ाद-हिन्द (स्वाधीन भारत की अंतरिम सरकार) का गठन किया। इस सरकार को जापान, इटली, जर्मनी, रूस, बर्मा, थाईलैंड, फिलीपींस, मलयेशिया सहित नौ देशों ने मान्यता प्रदान की। आजाद हिंद सरकार के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और युद्धमंत्री के पद की शपथ लेते हुए सुभाष ने कहा, 'मैं अपनी अंतिम सांस तक स्वतंत्रता यज्ञ को प्रज्वलित करता रहूंगा।'

इसके बाद पूर्व एशिया और जापान पहुंच कर उन्होंने आजाद हिंद फौज का विस्तार करना शुरू किया। पूर्व एशिया में नेताजी ने अनेक भाषण करके वहां स्थानीय भारतीय लोगों से आजाद हिन्द फौज में भर्ती होने का और आर्थिक मदद करने का आहृान किया। रंगून के 'जुबली हॉल' में सुभाष चंद्र बोस ने अपने भाषण के दौरान कहा, 'स्वतंत्रता संग्राम के मेरे साथियों! स्वतंत्रता बलिदान चाहती है। आपने आज़ादी के लिए बहुत त्याग किया है, किन्तु अभी प्राणों की आहुति देना शेष है। आजादी को आज अपने शीश फूल की तरह चढ़ा देने वाले पुजारियों की आवश्यकता है। ऐसे नौजवानों की आवश्यकता है, जो अपना सिर काट कर स्वाधीनता की देवी को भेंट चढ़ा सकें। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा। खून भी एक-दो बूंद नहीं बल्कि इतना कि खून का एक महासागर तैयार हो जाये और उसमें में ब्रिटिश साम्राज्य को डुबो दूं।' 

6 जुलाई, 1944 को आजाद हिंद रेडियो पर अपने भाषण के माध्यम से गांधीजी से बात करते हुए, नेताजी ने जापान से सहायता लेने का अपना कारण और आजाद हिन्द फौज की स्थापना के उद्देश्य के बारे में बताया। इस भाषण के दौरान, नेताजी ने गांधी जी को पहली बार राष्ट्रपिता बुलाकर अपनी 'जंग' के लिए उनका आशीर्वाद मांगा। हमारा दुर्भाग्य है कि हम आज तक उस महान क्रांतिवीर की मौत के सच का पता नहीं लगा पाए हैं। अगर आज हम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को सच्ची श्रद्धांजलि देना चाहते हैं तो हमें भारत को सर्वोपरि रखना होगा। 

जो लोग मानवाधिकार के नाम पर याकूब मेमन की फांसी और बुरहान वानी के वध का विरोध करते हैं, जो लोग मनवतावाद के नाम पर 'भारत तेरे टुकड़े होंगे' जैसे नारों का समर्थन करते हैं, जो लोग 'दलित उद्धार' के नाम पर भारतीय एकता, अखंडता तथा एकात्मता के विपक्ष में खड़े हो जाते हैं, जो लोग गौ रक्षा के नाम पर किसी निर्दोष को पीटकर अपनी व्यक्तिगत दुश्मनी का बदला लेते हैं और जो लोग 'अधुनिकता' के नाम पर अश्लीलता का समर्थन करते हुए भारतीयता के विरोध में खड़े हो जाते हैं, उनको यह समझना होगा कि  21वीं सदी लिर्फ मेरे भारत की है। भारत को तो हम 'विश्वगुरु' के पद पर पुनः प्रतिष्ठित करके ही रहेंगे। अगर 'उन्होंने' साथ दिया तो उनके साथ, अगर साथ नहीं दिया तो उनके बिना और अगर विरोध किया तो उनके विरोध को 'कुचलकर', मेरा भारत, 'भारत' बनकर ही रहेगा।

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