Monday 17 October 2016

मुस्लिमों का संघ से जुड़ना विरोधियों को हजम नहीं हो रहा

मैं लखनऊ के सरस्वती विद्या मंदिर में कक्षा 9 में पढ़ता था। मेरे साथ शेर आलम नाम का एक मुस्लिम छात्र भी पढ़ता था। प्रतिदिन विद्यालय में लगभग 40 मिनट का वंदना का कालांश होता था जिसमें ‘प्रातः स्मरण’, सरस्वती वंदना, गीता, सुभाषित, एकात्मता स्त्रोत, एकता मंत्र, शांति पाठ और गायत्री मंत्र होता था। अन्य विद्यार्थियों की तरह शेर आलम भी वंदना में भाग लेता था और पूर्ण आस्था के साथ वंदना करता था। उसके बाद मध्यावकाश के दौरान हम सभी एक साथ बैठकर भोजन करते थे। भोजन से पहले सभी विद्यार्थी पंक्तिबद्ध होकर बैठते थे और भोजन मंत्र करते थे। उसके बाद विद्यालय से अवकाश के समय हम सभी वंदे मातरम् करते थे और फिर घर जाते थे। प्रारंभिक शिक्षा से लेकर द्वादश तक की शिक्षा मैंने विद्या भारती द्वारा संचालित सरस्वती शिशु विद्या मंदिर में ही प्राप्त की। इस दौर में बहुत से मुस्लिम मित्र मिले। उनमें से कुछ ऐसे भी हैं जिनसे आज भी बात होती है। इस पूरी ‘कथा’ को बताने का उद्देश्य यह है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबंध रखने वाले विद्या भारती द्वारा संचालित विद्यालय में मुझे एक बार भी नहीं कहा गया कि मुस्लिम या इस्लाम, मेरे या भारत के लिए किसी भी तरह से नुकसान पहुंचा सकते हैं।

vishwa gaurav
विद्या भारती के आंकड़ों के मुताबिक, सरस्वती विद्या मंदिर नामक विद्यालयों में फिलहाल लगभग 48 हजार मुस्लिम विद्यार्थी पढ़ रहे हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में विद्या भारती के विद्यालयों में 12 हजार मुस्लिम छात्र, वहीं मध्य प्रदेश में 10 हजार मुस्लिम शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। इन विद्यार्थियों को ना ही गीता पाठ से परहेज है और ना ही सरस्वती वंदना से। दूसरे दृष्टिकोण से देखें तो इन मुस्लिम विद्यार्थियों के साथ कथित ‘हिंदूवादी’ संगठन से संबंध रखने वाले विद्या भारती द्वारा संचालित विद्यालयों में किसी तरह का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष भेदभाव नहीं किया जाता। यह बात मैं इतने विश्वास से इसलिए कह रहा हूं क्योंकि मैं स्वयं वहां का विद्यार्थी रहा हूं। हाल ही में असम में 10वीं की परीक्षा में टॉप करने वाले सरफराज हुसैन मेरे दावे को और अधिक प्रमाणिकता प्रदान करते हैं। सरफराज ने जब 10वीं की परीक्षा में टॉप किया तो उसके पिता ने कहा कि उनके बच्चे की सफलता के पीछे उसके विद्यालय से मिले संस्कार हैं।

अब आते हैं मूल विषय पर, इस देश में कुछ ऐसे लोग हैं जो आरएसएस पर आरोप लगाते हैं कि वह मुस्लिम विरोधी है। यदि संघ सच में मुस्लिम विरोधी होता तो भले ही अपनी सार्वजनिक शाखाओं में ना सही लेकिन अपने प्रशिक्षण वर्गों में इस बात को जरूर कहता कि स्वयंसेवकों का मूल उद्देश्य मुस्लिम विरोध होना चाहिए। लेकिन मैंने आज तक यह बात नहीं सुनी। मैंने संघ को बहुत नजदीक से देखा और समझा है। शाखा भी गया हूं और प्रशिक्षण वर्गों में भी रहा हूं। लेकिन वहां तो सिर्फ भारत की बात की गई। संघ का स्पष्ट मत है कि भारत ‘हिंदू राष्ट्र’ है। लेकिन इस ‘हिंदू’ शब्द की व्यापकता को समझे बिना संघ की विचारधारा को सांप्रदायिक मान लेना ठीक नहीं है। यदि कोई ये कहे कि भारत में सिर्फ एक विशेष पूजा पद्धति को मानने वाले लोग रह सकते हैं, यह देश सिर्फ उनका है जो ‘इबादत’ या ‘प्रे’ नहीं बल्कि ‘पूजा’ करते हैं तो इस कॉन्सेप्ट पर मेरी कड़ी आपत्ति है। संघ का हिंदुत्व श्रीराम के राजधर्म से शुरू होकर डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के राष्ट्रधर्म पर समाप्त हो जाता है।
संघ का मूल सिद्धांत कहता है कि ‘हिंदुस्तान’ में रहने वाला हर एक व्यक्ति जो गाय, गंगा, गीता और गायत्री के प्रति समर्पण रखता है, भारत की मिट्टी से प्रेम करता है, वह हिंदू है।

अब हो सकता है कि गाय, गंगा, गीता और गायत्री पर कुछ लोगों को आपत्ति हो। लेकिन आपत्ति करने से पूर्व बेहतर होगा कि गाय, गंगा, गीता और गायत्री को समझ लें। गाय एक ऐसी प्राणी है जो मां के बाद एक बालक के जीवन को सर्वाधिक पोषित करती है। विज्ञान कहता है कि मां के पीले दूध के बाद आसानी से उपलब्ध होने वाले पदार्थों में गाय का दूध एक बच्चे के लिए सर्वाधिक लाभकारी होता है। गंगा के जल की निर्मलता किसी से छिपी नहीं है। गीता में जीवन के प्रत्येक पक्ष के दायित्व और उनके निर्वहन के सिद्धांत दिए गए हैं। गायत्री की महत्ता संपूर्ण ब्रह्मांड को एक सूत्र में पिरोकर रखने वाले  ‘ॐ’ के बराबर है। हालांकि वर्तमान समय में ना ही गाय के दूध में पूर्व की विशिष्टता रह गई है और ना ही गंगाजल में निर्मलता। क्योंकि अब ना ही वैसी गाय उपलब्ध हैं और गंगा को तो हमने स्वयं मैला कर दिया है। लेकिन बात मूल सिद्धांत की हो रही है और उस मूल सिद्धांत में कहीं कोई दुर्भावना नजर नहीं आती।

संघ का हिंदुत्व किसी विशेष पूजा पद्धति में विश्वास रखने वाले व्यक्ति से संबंध नहीं रखता बल्कि वह संबंध रखता है एक सांस्कृतिक धरोहर के गौरव को उठाकर चलने वाले प्रत्येक राष्ट्रवादी से। जो भारत से प्रेम करता है, भारत की संस्कृति से प्रेम करता है वह हिंदू है। इसके लिए इस बात की कोई अनिवार्यता नहीं है कि आप संघ के स्वयंसेवक हों या रोज सुबह मंदिर जाकर आरती करते हों। रही बात उन लोगों की जो मुसलमानों से जबरन ‘भारत माता की जय’ का नारा लगवाना चाहते हैं, वे क्या इस बात की गारंटी ले सकते हैं कि इस नारे को लगाने वाला हर व्यक्ति भारत की आत्मा का सम्मान कर सकता है? एक मुसलमान दिन में 5 बार सजदा करते वक्त इस मुल्क की जमीन को चूमता है, उसकी इबादत करता है। उसे किसी सर्टिफिकेट की कोई आवश्यकता नहीं है। लेकिन इसके साथ ही यह भी नहीं चलेगा कि कोई कहे कि मैं भारत को मां के समान सम्मान नहीं दूंगा। ‘भारत माता की जय’ बोलने वाला प्रत्येक व्यक्ति देशभक्त नहीं हो सकता और भारत माता की जय न बोलने वाला प्रत्येक व्यक्ति देशद्रोही नहीं हो सकता। लेकिन जबरन किसी एक नारे के आधार पर देशभक्त होने का सर्टिफिकेट बांटने वाला अतिवादी और बेवकूफ जरूर होगा। साथ ही ‘भारत माता की जय’ का विरोध करने वाला ‘देशद्रोही’ और ‘कुंठित’ भी होगा। आसान शब्दों में ऐसे समझिए कि अगर कोई ‘भारत जिंदाबाद’ नहीं कह रहा है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह भारतद्रोही हो लेकिन अगर कोई किसी भी कुतर्क के सहारे ‘भारत जिंदाबाद’ का विरोध कर रहा है तो वह भारतद्रोही ही होगा।

इन सारी चीजों में संघ का इस्लाम विरोध कहां से प्रदर्शित होता है, यह समझ से परे है। समस्या यह नहीं है कि संघ के मूल सिद्धांतों को गलत तरह से समझा जा रहा है। बल्कि मूल समस्या यह है कि विरोधियों को हजम नहीं हो रहा है कि अब मुसलमान संघ से जुड़ने लगे हैं। अब वे तीन तलाक का विरोध करने लगे हैं, अब उन्हें वंदे मातरम बोलने से आपत्ति नहीं, अब वे बकरीद पर केक रूपी बकरा काटने लगे हैं, अब वे रूढ़ियों से बाहर निकलकर भारत को सर्वोपरि मानने लगे हैं। संघ के समवैचारिक राजनीतिक संगठन की भी मुसलमानों में स्वीकार्यता बढ़ रही है। 67% मुस्लिम जनसंख्या के साथ जम्मू और कश्मीर भारत का सबसे ज्यादा मुसलमान आबादी वाला राज्य है। वहां सत्ता में बीजेपी गठबंधन है। इस बात को कतई नहीं स्वीकार किया जा सकता कि बिना मुस्लिमों के समर्थन के जम्मू और कश्मीर में बीजेपी को इतना बड़ा जनमत मिला। असम में मुस्लिम जनसंख्या 34% है, वहां बीजेपी 60 सीटों के साथ सत्ता पर काबिज है। यह भी संभव नहीं है कि 2014 में हुए लोकसभा चुनाव को बीजेपी बिना मुस्लिम समर्थन के जीत लेती। अब जब सब कुछ ठीक होने लगा है तो कुछ लोगों की विभाजनकारी नीतियां काम नहीं कर रही हैं तो कुंठा में वे संघ और उसके समवैचारिक संगठनों को बिना किसी प्रमाण के ‘इस्लाम विरोधी’ करार देने में लगे हुए हैं।

वर्तमान केन्द्र सरकार की अब तक की कार्यपद्धति को देखकर मैं जिस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं, वह यह है कि केन्द्र सरकार का भारत विकास मॉडल किसी भी सम्प्रदाय और धर्म में भेदभाव नहीं करता है बल्कि सबके समान विकास की कल्पना को साकार करने में लगा हुआ है। अगर कमी है तो मात्र यह कि बीजेपी के कुछ छोटे नेता फिजूल की बयानबाजी करके अनजाने में देश की एकता, अखंडता और एकात्मता को नुकसान पहुंचा रहे हैं। रही बात मुसलमानों की तो जिस तरह से लोकसभा चुनाव के 1 साल पहले मुसलमानों के मन में नरेन्द्र मोदी को लेकर ‘डर’ था, वह समाप्त हो गया है। वर्तमान सरकार के दौरान देश के मुसलमान पूरी तरह सुरक्षित हैं और मुस्लिमों को केवल वोट समझकर देखने वाली पार्टियां और उनके अल्पकालिक तथा वैचारिक कार्यकर्ता फालतू की भ्रान्ति इसलिए फैलाते हैं क्योंकि वे वास्तव में मुसलमानों का और देश का विकास चाहते ही नहीं हैं और मुसलमानों को डराकर हमेशा अपना वोट बैंक बनाये रखना चाहते हैं।

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