Thursday 27 October 2016

जरा सोचिए! कैसी होगी शहीदों के घर की दिवाली

जगदीश सिंह, पठानकोट में तैनात एक सैनिक, के घर में शादी की तैयारियां चल रही थीं। एयरबेस पर आतंकी हमला हुआ और जगदीश सिंह शहीद हो गए।
गुरसेवक सिंह, पठानकोट में तैनात एक और जवान, की शादी का एक महीना बीता था। आतंकी हमला हुआ और जसप्रीत विधवा हो गईं।
दिवाकर, CRPF का जवान, नक्सलियों से मुठभेड़ में शहीद हो गए। शहादत के 21 दिन पहले ही शादी हुई थी।
लांस नायक आरके यादव की पत्नी गर्भवती थीं। उड़ी में आतंकी हमला हुआ और वह बिना अपने बच्चे का मुंह देखे ही शहीद हो गए।
अशोक सिंह उड़ी हमले में शहीद हो गए। 78 वर्षीय दृष्टिहीन पिता ने उठाई बेटे की अर्थी।

ऐसे हजारों नाम हैं, जिनके बारे में मुझे या आपको पता तक नहीं है। क्या आप कल्पना भी कर सकते हैं कि जब किसी बूढ़े पिता के सामने उसके 25 साल के जवान बेटे का शव रखा जाता होगा तो उस पर क्या बीतती होगी? क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि जब एक मां अपने बेटे की शादी की तैयारियों में लगी होगी और उसी बीच उसके बेटे का शव उसके सामने आ जाता होगा, तो उसे कैसा लगता होगा? क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि जिन हाथों की मेहंदी का रंग तक नहीं उतरा होगा, उन हाथों को अपने मंगलसूत्र को उतारना कैसा लगता होगा? क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि जब एक बच्चा पैदा होने के बाद अपनी पूरी जिंदगी में पिता का प्यार नहीं पा पाता होगा, तो उसे कैसा लगता लगेगा?

नहीं…. यह सब कुछ हमारी कल्पना से परे है। लेकिन क्या आपने सोचा है कि वे लोग सीमा पर, जंगलों में, पहाड़ों पर, 50 डिग्री की चिलचिलाती गर्मी में, रेगिस्तान में, -50 डिग्री की जमा देने वाली ठंड में क्यों खड़े रहते हैं? क्या इसलिए कि उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिलती? या इसलिए कि वे कुछ पैसे कमाकर अपना घर चला सकें? नहीं, वे इसलिए कठिनतम परिस्थितियों में संघर्ष करते रहते हैं ताकि हम आसानी से अपने त्योहारों को मना सकें। वे अपने बच्चों से दूर इसलिए रहते हैं ताकि हम अपने बच्चों के साथ खुशी से रह सकें। वे अपने परिवार से दूर इसलिए रहते हैं ताकि हम अपने परिवार के साथ रह सकें। ध्यान रहे, अगर सरहद पर फौज नहीं होगी तो हम मौज से त्योहार नहीं मना सकते।

जरा सोचिए, क्या सीमा पर तैनात एक जवान की मां की इच्छा नहीं होती होगी कि उसका बेटा दिवाली पर उसके साथ हो? क्या एक 7 साल की बच्ची यह नहीं चाहती होगी कि वह भी अपने दोस्तों की तरह ही होली पर, अपने पापा के साथ शॉपिंग करने जाए? एक महिला जिसने दूसरी बार करवा चौथ का व्रत रखा होगा, वह नहीं चाहती होगी कि पिछली बार की तरह उसे अपने पति की तस्वीर देखकर व्रत का परायण पड़े। सबके अपने अरमान होते हैं, सबकी अपनी कामनाएं होती हैं, लेकिन वे इन सबकी परवाह नहीं करते। वे परवाह करते हैं तो उनकी, जिनसे उनका कोई रिश्ता नहीं। वे परवाह करते हैं हमारी और आपकी। उनके लिए जन्म देने वाली माता की इच्छाओं से ज्यादा महत्व हमारी और आपकी खुशियां रखती हैं। और हम, क्या करते हैं उनके लिए? उनकी शहादत पर फेसबुक पर एक पोस्ट डाल देते हैं या फिर ट्विटर पर ट्वीट कर देते हैं। क्या हमारी इतनी ही जिम्मेदारी है? लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं।

vishva gaurav
दोस्तो, पिछले एक साल में हमारी भारत माता ने बहुत बेटे खोए। हम सीमा पर तैनात सैनिकों के लिए कुछ नहीं कर सकते, तो क्या करें? दिवाली आने वाली है। सनातन परंपरा में माना जाता है कि दिवाली की रात दिया जलाकर अगर हम ईश्वर से कुछ मांगते हैं तो ईश्वर हमारी बात जल्दी सुनता है। कम से कम हम इतना तो कर ही सकते हैं कि दिवाली पर जब रात में पूजा करते समय अपने परिवार के सदस्यों की सलामती के लिए प्रार्थना करें, तो साथ में एक दिया जलाकर उनकी सलामती के लिए भी दुआ करें जो हमारे लिए अमावस की उस काली रात में सीमा पर तैनात हैं। कवियत्री जागृति त्रिपाठी लिखती हैं,
अरमानों को न्योछावर कर, जो सब कुछ पाकर खो  जाते हैं,
स्वार्थ भरी इस दुनिया में अमरत्वलीन हो जाते हैं।
जिन भारत के वीर सपूतों का, बस इतना सा ही नारा है,
है शान तिरंगा ये अपना, और राष्ट्र, जान से प्यारा है।
एक दीप जला दिवाली पर, करें शौर्य को निज प्रणाम,
और करें प्रार्थना रब से कि ना कोई सैनिक खोए जान।
मैं इस दिवाली भारतीय सेना के लिए दीया जलाकर सैनिकों की सलामती के लिए दुआ मागूंगा। क्या आप नहीं जलाएंगे इस दिवाली एक दीप भारतीय सेना के नाम?

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